एक श्रृंगार गीत -
कजरे गजरे झाँझर झूमर चूनर ने उकसाया था
हार गले के टूट गए कुछ ऐसे अंक लगाया था ।
हरी चूड़ियाँ टूट गईं क्यों सुबह सुबह तुम रूठ गईं
कल शब तुमने ही तो मुझको अपने पास बुलाया था।
हाथों की मेंहदी न बिगड़ी और महावर ज्यों की त्यों
होठों की लाली को तुमने खुद ही कहाँ बचाया था।
जितनी करवट उतनी सलवट इस पर काहे का झगड़ा
रेशम की चादर को बोलो किसने यहाँ बिछाया था।
झूठ कहूँ तो कौआ काटे मैंने दिया जलाया था
खता तुम्हारी थी तुमने तो खुद ही दिया बुझाया था।
नई चूड़ियाँ ले लेना तुम हार नया बनवा लेना
अभी अभी तो पिछले हफ्ते ही इनको बनवाया था।
*अरुण कुमार निगम*
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
कजरे गजरे झाँझर झूमर चूनर ने उकसाया था
हार गले के टूट गए कुछ ऐसे अंक लगाया था ।
हरी चूड़ियाँ टूट गईं क्यों सुबह सुबह तुम रूठ गईं
कल शब तुमने ही तो मुझको अपने पास बुलाया था।
हाथों की मेंहदी न बिगड़ी और महावर ज्यों की त्यों
होठों की लाली को तुमने खुद ही कहाँ बचाया था।
जितनी करवट उतनी सलवट इस पर काहे का झगड़ा
रेशम की चादर को बोलो किसने यहाँ बिछाया था।
झूठ कहूँ तो कौआ काटे मैंने दिया जलाया था
खता तुम्हारी थी तुमने तो खुद ही दिया बुझाया था।
नई चूड़ियाँ ले लेना तुम हार नया बनवा लेना
अभी अभी तो पिछले हफ्ते ही इनको बनवाया था।
*अरुण कुमार निगम*
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)