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Saturday, November 28, 2015

"छन्द के छ:"



छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "छन्द के छ:" का ग्राम अर्जुनी टिकरी में ऐतिहासिक विमोचन 


शरद पूर्णिमा की रात अमर कवि स्व.कोदूराम दलित के जन्म ग्राम अर्जुनी टिकरी (अर्जुन्दा) में शरद पूर्णिमा का भव्य आयोजन किया गया. आयोजित कविसम्मेलन के इस मंच से स्व.कोदूराम दलितके सुपुत्र अरुण निगम के छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह की किताब छन्द के छ का विमोचन माननीय श्री महेश गागड़ा (वन एवं विधि विधायी मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन) तथा सुप्रसिद्ध कवि गीतकार गायक श्री लक्ष्मण मस्तुरिया के करकमलों से संपन्न हुआ.


माननीय श्री महेश गागड़ा  ने छोटे से गाँव में इस तरह के साहित्यिक आयोजन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की.गाँव के सरपंच रीतेश देवांगन ने अपने स्वागत भाषण में अतिथियों का स्वागत करते हुये मंत्री जी से अनुरोध किया कि अमर कवि की जन्म स्थली होने के कारन ग्राम अर्जुनी टिकरी को गौरव ग्राम घोषित किया जाना चाहिए.

साहित्यकार और गुरतुर गोठ के संपादक संजीव तिवारी ने छन्द के छ पर प्रकाश डालते हुये बताया कि आज के युग में जब पारंपरिक काव्य विधा लुप्तप्राय सी हो रही है, इस किताब में पचास प्रकार के छन्दों की छत्तीसगढ़ी में रचना कर प्रत्येक के नियमों को  उदाहरणों सहित छत्तीसगढ़ी में सरलता से समझाया गया है. यह छन्द संग्रह छत्तीसगढ़ के नवोदित कवियों के लिये निश्चय ही अनमोल धरोहर साबित होगी और छत्तीसगढ़ी भाषा को पुष्ट करने में सहायक होगी. 

कवि सम्मलेन का प्रारम्भ श्रीमती सपना निगम ने अपने मधुर कंठ से किया -


राज्योत्सव मनावौ रे, घर-घर दिया जलावौ रे
सुवा ददरिया गावौ रे, एक नवंबर आ गे
दू हजार सन् एक नवंबर कइसे हम बिसराईं
छत्तीसगढ़ के गठन होय हे, ठेठरी खुरमी खाईं
चिखला माटी सुखागे रे, बदरा कहाँ लुकागे रे
काँसी फूलन लागे रे , एक नवंबर आ गे ......

उपस्थित जन समुदाय ने इस मधुर स्वर लहरी में गाये इस गीत को बेहद सराहा. 

सुप्रसिद्ध कवि लक्ष्मण मस्तुरिया ने सर्वप्रथम ग्रामवासियों का अभिवादन करते हुये कहा कि गाँव टिकरी के पवन भुइंया इहाँ निवास करइया बड़भागी मनखे चेलिक भाई बहिनी मन नान जवान चेलिक मन आज ये बहुत विसेस अवसर हे कोदूराम दलित जि के सुपुत्र अरुण निगम पिता के संस्कार कैसे मिलथे पहिली बार देखे के अवसर मिलिस साक्षात् पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो का धन संचय अइसे कहिथें अरुण निगम के कविता के किताब ल पढेंव तो पहिली मोला बड़ा अजीब लागिस कि आज कल के जमाना म सस्तौहा कवि सस्ता सस्ता चीज ला लिखत हें. सस्ता सस्ता चीज ला आदमी पसन्द करथे लेकिन जो मूल्य हे वो कीमती चीज के बने रहिथे ओखर से घटे नहीं. कभू कभू देखहू डालडा चांदी के कतका चलन चले रहिस ओखर जेवर बने ऐसे लगे जैसे चांदी खतम हो जाही अउ दूसर जेवर गहिना ल देख के ऐसे लगे जैसे सोना गायब हो जाही, नकली पथरा मन ला देख के ऐसे लगथे जैसे हीरा गायब हो जाही लेकिन ऐसन नहीं होवय असली चीज ह असली होथे  ओखर मूल्य जैसे जैसे लगातार नकली चीज आत जाथे असली चीज के कीमत बाढ़त जाथे. अउ एक ठी बात हमर भाई महेश गागड़ा जी एला अरुण बताते मोला तो सुरता नहीं हे, इन जब भैरमगढ़ के मंच म कविता पढ़े रहिन तेखर बाद मोर दिमाग म महेश गागड़ा के नाम रहि गे रहिस.सुबे मैं वोला बताएंव.. वो एक झन लड़का जो पढ़े रहिस कविता वोखर में हे बात, अगर वो ह लिखाही पढ़िही ना तो बहुत दूर तक जाही बहुत अच्छा आदमी बनही. अरुण ल ये बात याद रहिगे मोला नई रहिस मैं भुला गेंव. अचानक ये आयोजन करिस त मोला बताइस  ऐसे ऐसे बात हे वो जे लड़का के तारीफ करे रहेंव वो ह अब मंत्री बन गे. मैं कहेंव बुला के देख भई अगर आ जाय त. जे मन के बहुत उज्ज्वल रहिथे वो कहूँ मेर चले जाय  ये राजनीति त बड़े छोटे चीज हे वो कहूँ भी चले जाय अपन क्वालिटी ला नई खोवय, वोखर मन वईसने रही. वो परिस्थिति ल अपन अनुसार ढाल लेथे. अब साक्षात् देखत हौ, आप मंत्री हो के बुलावा म आइन. मैं महेश गागड़ा जी ला बहुत बहुत बधाई देथौं वो जउन भी बने अपन ये क्वालिटी ल बनाय रखे अपन हीरापन ल बनाय रखें यही बस्तर के गौरव हे यही छत्तीसगढ़ के गौरव हे



बढते कदम हों तो उत्कर्ष जीवन
भटके कदम तब तो अपकर्ष जीवन
मिल जाए जो ध्येय तो हर्ष जीवन
विपदाएं हों तो है संघर्ष जीवन 

ये धरती गीतों की धरती है टिकरी कहे म ऐसे लगथे कि सचमुच म इहाँ कवि कोदूराम दलित जी जन्मे रहिस के नहीं, हमू ला बाद में पता चलिस कि इहाँ के धरती म गीत बसे हे कविता बसे हे.तभे त खींचथे मन ला, गागड़ा भाई इसने थोड़े न आ जाही....
इसके बाद उन्होंने अपना मशहूर गीत सुनाया – 

गुन बिन नाम रूप बेकाम
ज्ञान बुध बिन सेवा बेदाम
त्याग बिन धन बल हे हराम
धरम बिन तन हे सरहा चाम
बाढ़े मन गुन गौरव सभिमान
होवै गुरु मात पिता के मान
भईया हो अइसे करो कुछ काम
के जुग जुग होवै तुंहर नाम 

अर्जुनी टिकरी के युवा कवि लोचन देशमुख ने इस वर्ष की अवर्षा कि स्थिति में अपने किसान मन कि पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुये छत्तीसगढ़ी में अपना गीत सुनाया –

सुनो मितान सुनो सियान
तहूँ किसान महूँ किसान
सुक्खा नरवा सुक्खा डोली
तब काय देवारी अउ काय होली
एसो के होगे मरे बिहान 

नवागढ़ से पधारे कवि रमेश चौहान ने स्व. कोदूराम दलित को स्मरण करते हुये कुण्डलिया छन्द में मानव जीवन की निस्सारता को प्रस्तुत किया – 

मरघटिया के पार मा, गोठ करंय सियान
कइसन खीरत जात हे, बने बने इंसान
बने बने इंसान, दिखत हें अब ना दुनिया
हे मनखे मा आज, सुवारथ के बैगुनिया
कर पर काज रमेश, बने मत रह तैं घटिया
आज नहीं ता काल, जाय बर हे मरघटिया

डॉ.संजय दानी ने मोबाइल, अंतरजातीय विवाह, बीबी के मायके जाने का सुख और सायकिल की कालेज गर्ल से टक्कर जैसे विषयों पर अपनी छोटी छोटी छत्तीसगढ़ी कविताओं द्वारा विशुद्ध हास्य का रस घोलते हुये जन समूह को लोटपोट कर दिया और खूब तालियाँ बटोरी.

मोर टुरा कल परोसिन के टुरी के साथ कोनो कोती भगा गिस,
तहां ले ओखर जम्मो परिवार मोर घर दुआरी जोरिया गिस,
हम दुनो झिन डर्रावत कांपत लुका गेन ख़टिया के तरी म,
अउ हनुमान चालिसा ला घलोक धरे बर भुला गेन हड़बड़ी म,
ततके म आवाज आइस गुप्ता जी थोरकिन बाहिर आवव,
दुनो' लैका मन कोन डहार भागे हवय फरियार के बतावव,
सिटकिनी खोल के में हा उंखर बीच अमा गेंव कांपत कांपत,
उमन जम्मो झन मोला पोटार के नाचे लगिन हांसत हांसत,
लैका मन भगा के सादी करिन तो बने होइस ओखर बाप कहिस,
दुल्हा खोजे के अउ दहेज के जुगाड़ के हमर तो पाप कटिस,
अब हर टुरी -टुरा ला संगी हो ऐसने भगा के करना चाही सादी,
तभे हम की सकींगे कि हमर देस मा अब आइस हे सही आज़ादी,
हमसे डर्राव झन हम आज आप ल दे बर आय हन धन्यबाद,
अउ ये तो बतावव तुंहर दुसर लैका तैयार होही के साल बाद्।

मगरलोड से आये हास्य व्यंग्य के कवि वीरेंद्र सरल ने हास्य और व्यंग्य के ऐसे सुन्दर चित्र खींचे कि सभी श्रोता मुग्ध हो गये.

एक शिक्षक ने बच्चों से प्रश्न किया
बच्चों बताओ, खड़े होकर समझाओ
हमारे देश में ऐसा कौन सा स्थान है
जहाँ मरना बड़ा ही आसान है
बच्चों ने प्रश्न ध्यान से सुना
एक पंक्ति का बड़ा ही सुन्दर उत्तर चुना
एक छात्र ने खड़े होकर कहा सर
ये तो बहुत सरल सवाल है
हमारे देश में वो स्थान सरकारी अस्पताल है. 

धमतरी के उर्जावान कवि कान्हा कौशिक ने बताया कि आस पास की सामान्य सी घटनाएँ को कविताओं में ढाल कर अपनी चुटीली हास्य व्यंग्य रचनाओं से सराबोर किया -

लतेल , चल गाड़ी ला ढकेल
दू रुपिया किलो चाऊंर, दू सौ रुपिया किलो दाल
अउ सौ रुपिया किलो तेल
लतेल , चल जिनगी के गाड़ी ला ढकेल


छत्तीसगढ़ी व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर और गुरतुर गोठ के संपादक संजीव तिवारी ने छत्तीसगढ़ी गजलों में व्यंग्य की सुन्दर बानगी प्रस्तुत की.

चेपटी हर विनायक होगे
गुंडा रहिस विधायक होगे
पढ़े लिखे मन करम ठठावे
अंगठा छाप सब लायक होगे
सरवन के तय पटंतर झन दे
अब बेटा मन नालायक होगे
सरी उमर अपराध करिस जेन ,
रामचरित के गायक होगे
गुंडा रहिस विधायक होगे
बड़ा गजब ये दुनियाँ देखव
अक्कल ला सब गदहा चर गे
बोनस के अब का हे भरोसा
मंडी मन मा धान ह सर गे |

अरुण निगम ने अपनी किताब छन्द के छ से एक कुण्डलिया छन्द प्रस्तुत किया.

छत्तीसगढ़ के संस्कृति, एक समुन्दर जान
डबरा के भिन्दोल मन ,  सदा रहीं अंजान
सदा रहीं अंजान ,  मनेमन - मा भरमाहीं
घूमें तीनों लोक ,  कहाँ  अइसन सुख पाहीं
ढाई आखर बाँच, अकड़ झन पोथी पढ़ के
एक समुन्दर जान,  संस्कृति छत्तीसगढ़ के |

कार्यक्रम का सफल सञ्चालन अर्जुन्दा के लोकप्रिय कवि मिथिलेश शर्मा ने बड़ी ही कुशलता से किया. उनकी कविताओं पर जनमानस झूम उठा. 

ये जो कवि तुम्हें हँसते हुये दिखता है
तुम क्या जानो, कितना जहर पचा के लिखता है.
जख्म सेने से अब क्या होगा
राय दी देने से अब क्या होगा
सियासत की लाश बदबू देती है
कफ़न बदल देने स्व अब क्या होगा
दौरेमहफ़िल है
हँसने हंसाने की बात कर
कुछ अपनी बातें कर
कुछ जमाने की बात कर
क्या मिलेगा किस्से सुना
उसकी बेवफाई का
सब कुछ लुटा दिया
उस दीवाने की बात कर

कवि सम्मलेन के दूसरे दौर की शुरुवात श्रीमती सपना निगम के मधुर छत्तीसगढ़ी गीत से हुई –

दीदी के पठौनी हे, भांटो घर आय हे 

इसके बाद लक्ष्मण मस्तुरिया के मधुर गीतों की अमृत वर्षा शुरू हो गई. 

धरमधाम भारत भुइंया के माँझ म हे छत्तीसगढ़ राज
जिहां के माटी सोनहा धनहा लोहा कोइला उगले खान
फिर,
मोर रग-रग म हे मया दया
मंय मह्भारत के गीता हौं...... 
ले चल रे ले चल ओ मोटर वाला ले चल......
मन डोले रे मांघ फगुनवा रस घोरे रे मांघ फगुनवा ......
मोर संग चलव रे ......
बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमे..... 






ऐसे मधुर गीतों की देर रात तक फरमाइशें होती रही और रस की वर्षा भी होती रही.
 .
आयोजन की सफलता का श्रेय ग्राम पंचायत टिकरी, नवयुक मंडल, संगवारी हमर गाँव के समूह और टिकरी अर्जुन्दा के ग्रामवासियों को जाता है.