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Thursday, February 6, 2014

शुभ-वसंत


मुझको हे वीणावादिनी वर दे
कल्पनाओं को तू नए पर दे |

अपनी गज़लों में आरती गाऊँ
कंठ को मेरे तू मधुर स्वर दे |

झीनी झीनी चदरिया ओढ़ सकूँ
मेरी झोली में ढाई आखर दे |

विष का प्याला पीऊँ तो नाच उठूँ
मेरे पाँवों को ऐसी झाँझर दे |

सुनके अंतस् को मेरे ठेस लगे 
मेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे |

साँस सौरभ समाए शामोसहर
मुक्त विचरण करूँ वो अम्बर दे |

सूर बन कर चढ़ाऊँ नैन तुझे
इन चिरागों में रोशनी भर दे ||

(तरही ग़ज़ल)

अरूण कुमार निगम 
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Monday, February 3, 2014

आल्हा छन्द

“हम सुधरे तो युग सुधरेगा”

आदिकाल के  मानव ने  था , रखा  सभ्यता के पथ पाँव
और  बाँटते  रहा  हमेशा  , अपनी  नव-पीढ़ी  को  छाँव
कालान्तर में वही सभ्यता , चरम -शिखर पर पहुँची आज
आओ हम मूल्यांकन कर लें,कितना विकसित हुआ समाज

नैतिकता को लील रहे हैं, कितने  चैनल औ’ चलचित्र
दूषित  वातावरण “पीढ़ियाँ” , कैसे खुद को रखें पवित्र   
कौन दिशा सभ्यता चली है,यह उन्नति है या अवसान
बलात्कार को  न्यौता  देते ,खुद ही उत्तेजक परिधान

मेहनत की  लुट रही कमाई , फूल रहा ‘सट्टा – बाजार’ 
धन-दौलत को  ‘जुआ’ खा रहा, मदिरा लूट रही घर-बार 
‘कर’ की लालच जोंक सरीखी,नशा कर रहा सेहत नाश
सत्यानाशी   सत्ताधारी , धरा   छोड़   देखें  आकाश

यदाकदा अब भी होते हैं,इस युग में भी बाल विवाह
ऐसे माता - पिता अशिक्षित, या  होते  हैं लापरवाह  
मार रहे कन्या-भ्रूणों को , वंश-वृद्धि की मन में चाह
पढ़े - लिखे ऐसे मूर्खों को , बोलो कौन दिखाये  राह

कहीं चोरियाँ  कहीं डकैती , कहीं राह में  कटती जेब
कहीं अपहरण कहीं फिरौती , कहीं झूठ  है कहीं फरेब
कहीं बाल-श्रमिकों का शोषण, कहीं भिखारी मांगें भीख
सदी यातना भुगत रही है , सिसक रही है हर तारीख  

किसको  जिम्मेवार  बतायें , किसके सर पर डालें दोष
किसके सम्मुख करें प्रदर्शन,प्रकट करें हम किस पर रोष
दोषारोपण छोड़ चलो हम, मिलजुल कर कर लें शुरुवात
“हम सुधरे तो युग सुधरेगा” , सोलह आने सच्ची बात

नैतिक शिक्षा पर बल देकर , बच्चों में डालें संस्कार
हंसों की पहचान करें हम , और चुनें उत्तम सरकार
त्याग सभ्यता पश्चिम की अब, सीखें बस पूरब का ज्ञान
फिर सोने की चिड़िया होगा, अपना भारत देश महान

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)