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Monday, November 25, 2013

शायद प्रेम वही कहलाये.....

पूर्ण शून्य है,शून्य ब्रम्ह है
एक अंश सबको हर्षाये
आधा और अधूरा होवे,
शायद प्रेम वही कहलाये

मिट जाये तन का आकर्षण
मन चाहे बस त्याग-समर्पण
बंद लोचनों से दर्शन हो
उर में तीनों लोक समाये

उधर पुष्प चुनती प्रिय किंचित
ह्रदय-श्वास इस ओर है सुरभित
अनजानी लिपियों को बाँचे
शब्दहीन गीतों को गाये

पूर्ण प्रेम कब किसने साधा
राधा-कृष्ण प्रेम भी आधा
इसीलिये ढाई आखर के
ढाई ही पर्याय बनाये .....

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, छत्तीसगढ़

Tuesday, November 19, 2013

गीत..................

मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?
गीत मेरे सुन वाह करोगी ?

सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया 
जीवन के संग रहा खेलता, प्रणय निवेदन कर ना पाया
क्या जीवन से डाह करोगी ?

कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता
काल-चक्र कब मेरे बस में, कौन भला है इससे जीता
अब मुझसे क्या चाह करोगी ?

श्वेत श्याम रतनार दृगों में, श्वेत पुतलियाँ हैं एकाकी  
काले कुंतल श्वेत हो गए, सिर्फ झुर्रियाँ तन पर बाकी
क्या इनको फिर स्याह करोगी ?

आते-जाते जल-घट घूंघट, कब पनघट ने प्यास बुझाई
स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई  
अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Sunday, November 17, 2013

कैसे कहूँ आजाद है...........

कैसे कहूँ आजाद है
पसरा हुआ अवसाद है

कण-कण कसैला हो गया,पानी विषैला हो गया
शब्द आजादी का पावन,  अर्थ मैला हो गया.
नि:शब्द हर संवाद है

अपनी अकिंचित भूल है,कुम्हला रहा हर फूल है
सींचा जिसे निज रक्त से, अंतस चुभाता शूल है
अब मौन अंतर्नाद है

कुछ बँध गये जंजीर से, कुछ बिंध गये हैं तीर से
धृतराष्ट क्यों देखे भला, कितने कलपते पीर से
सत्ता मिली, उन्माद है

संकल्प हितोपदेश का,अनुमान लो परिवेश का
तेरा नहीं मेरा नहीं , यह प्रश्न पूरे देश का      
तुममें छुपा प्रहलाद है

अब तो सम्हलना चाहिये,अंतस मचलना चाहिये
जागो युवा रण बाँकुरों,  मौसम बदलना चाहिये
अब विजय निर्विवाद है

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)