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Saturday, September 28, 2013

छत्तीसगढ़ी काव्य में अमर कवि कोदूराम ‘दलित’



28 सितम्बर : 46 वीं पुण्य तिथि पर विशेष
-विनोद साव (अमर किरण में 28 सितम्बर 1989 को प्रकाशित)
साहित्यकार का सबसे अच्छा परिचय उसकी रचना से हो जाता है | साहित्यकार की कृतियाँ उसकी परछाई है | रचनाकार का व्यक्तित्व, चरित्र, स्वभाव और दृष्टिकोण उसकी रचनाओं में प्रतिबिम्बित होता है | छत्तीसगढ़ी संस्कृति और साहित्य के धनी दुर्ग नगर में एक स्मय में ऐसे ही रचनाकार छत्तीसगढ़ी काव्य में अमर कवि कोदूराम दलित उदित हुये जिनका परिचय उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत है :
“लइका पढ़ई के सुघर, करत हववँ  मयँ काम
कोदूराम दलित हवय , मोर गँवइहा नाम
शँउक मु हूँ –ला घलो, हवय कविता गढ़ई के
करथवँ काम दुरुग –माँ मयँ लइका पढ़ई के “
दलित जी छरहरे, गोरे रंग के बड़े सुदर्शन व्यक्तित्व के थे | कुर्ता, पायजामा, गाँधी टोपी और हाथ में छतरी उनकी पहचान बन गई थी | हँसमुख और मिलनसार होने के कारण सभी उम्र और वर्ग के लोगों में हिलमिल जाया करते थे | कविता करना उनका प्राकृतिक गुण था | उन्हीं के शब्दों में –
“कवि पैदा होकर आता है,
होती कवियों की खान नहीं
कविता करना आसान नहीं |
रचना क्षमता प्रकृति प्रदत्त इस गुण के कारण ही दलित जी का रचना संसार इतना व्यापक है कि उन्होंने न केवल छत्तीसगढ़ी बल्कि हिन्दी साहित्य की सभी विधओं में भी लिखा | कवि की आत्मा रखने के बाद भी उन्होंने अनेकों कहानियाँ, निबंध, एकांकी, प्रहसन, पहेलियाँ,बाल गीत और मंचस्थ करने के लिये क्रिया-गीत (एक्शन सांग) लिखे | दलित जी की अधिकांश कवितायें छंद शैली में लिखी गई हैं | वे हास्य-व्यंग्य के कुशल चितेरे थे | व्यंग्य और विनोद से भरी उनकी कविता चुनाव के टिक्कस की पंक्तियाँ देखिये | चुनाव के पास आने पर नेताओं में टिकट की लालसा कितनी तीव्र हो जाती है –
बड़का चुनाव अब लकठाइस,
टिक्कस के धूम गजब छाइस |
टिक्कस बर सब मुँह फारत हें
टिक्कस बर हाथ पसारत हें
टिक्कस बिन कुछु सुहाय नहीं
भोजन कोती मन जाय नहीं
टिक्कस बिन निदरा आय नहीं
डौकी-लइका तक भाय नहीं
टिक्कस हर बिकट जुलुम ढाइस
बड़का चुनाव अब लकठाइस “|
स्वाधीनता के पहले जिन नेताओं ने देश के लिये त्याग और बलिदान दिया उनकी तुलना में वे आज के सुविधाभोगी नेताओं के विषय में कहते हैं | ध्यान दें छत्तीसगढ़ी की यह रचना हिन्दी के कितने करीब है –
“ तब के नेता जन हितकारी |
अब के नेता पदवीधारी ||
तब के नेता किये कमाल |
अब के नित पहिने जयमाल ||
तब के नेता काटे जेल |
अब के नेता चौथी फेल ||
तब के नेता गिट्टी फोड़े |
अब के नेता कुर्सी तोड़े ||
तब के नेता डण्डे खाये |
अब के नेता अण्डे खाये||
तब के नेता लिये सुराज |
अब के पूरा भोगैं राज ||
अंतिम पंक्ति में कवि जनता को जागृत करते हैं –
तब के नेता को हम माने |
अब के नेता को पहिचाने ||
बापू का मारग अपनावें |
गिरे जनों को ऊपर लावें ||
दलित जी ने अपना काव्य-कौशल केवल लिखकर ही नहीं वरन् मंचों पर प्रस्तुत करके भी दिखलाया | वे अपने समय में कवि-सम्मेलनों के बड़े हिट कवि थे | तत्कालीन मंचीय कवि पतिराम साव, शिशुपाल, बल्देव यादव, निरंजन लाल गुप्त, दानेश्वर शर्मा आदि सब एक साथ हुआ करते थे | दलित जी को आकाशवाणी नागपुर, इंदौर और भोपाल केंद्रों में भी आमंत्रित किया जाता था जहाँ उनकी कवितायें और लोक-कथायें प्रसारित होती थीं |  कवि सम्मेलनों में अनेक छोटे-बड़े स्थानों में वे गये | विशेषकर रायपुर, बिलासपुर, भिलाई और धमतरी के मंचों पर उन्होंने अपने काव्य-कौशल का डंका बजाया | शासकीय सूचना और प्रसारण विभाग द्वारा उज्जैन के कुम्भ मेले में भी काव्य-पाठ के लिये आमंत्रित किये गये थे | मद्य-निषेध पर उनकी कविता म.प्र.शासन द्वारा पुरस्कृत हुई |
मंचों में उनकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई थी कि जब स्व. इंदिरा गांधी का 1963 में दुर्ग के तुलाराम पाठशाला में  आगमन हुआ था तब स्वागत के लिये दलित जी को ही चुना गया | स्वागत गान की कुछ पंक्तियाँ देखिये –
धन्य आज की घड़ी सुहानी, धन्य आज की शाम
धन्य-धन्य हम दुर्ग निवासी,धन्य आज यह धाम ||
दलित जी एक साहित्यकार ही नहीं बल्कि एक योग्य अध्यापक, समाज सुधारक और संस्कृत निष्ठ व्यक्ति थे | वे भारत सेवक समाज और आर्य समाज के सक्रियसदस्य थे | जिला सहकारी बैंक के संचालक और म्युनिस्पल कर्मचारी सभा के दो बार मंत्री हुये तथा सरपंच भी रहे | वे जुझारू आदमी थे | 1947 में स्वराज के बाद शिक्षक संघ के प्रांतीय आंदोलन में कूद पड़े तो उन्हें और पतिराम साव जी को अन्य आंदोलनकारियों के साथ गिरफ्तार कर 15 दिनों के लिये नागपुर जेल में बंद रखा गया | जेल से छूटने के बाद इन दोनों को प्रधानाध्यापक पद से रिवर्टकर दिया गया | राष्ट्र के लिये शहीद सैनिकों को समर्पित उनकी पंक्तियाँ देखिये –
आइस सुग्घर परव सुरहुती अऊ देवारी
चल नोनी हम ओरी-ओरी दिया बारबो
जउन सिपाही जी-परान होमिस स्वदेश बर
पहिली ऊँकर आज आरती हम उतारबो ||
वे बच्चों में भी राष्ट्र-प्रेम की भावना भरते हुये कहते हैं –
उठ जाग हिन्द के बाल वीर, तेरा भविष्य उज्जवल है
मत हो अधीर, बन कर्मवीर, उठ जाग हिन्द के बाल वीर ||
उनके अनेकों बाल गीतों में एक गीत इस प्रकार है –
अम्मा ! मेरी कर दे शादी
ऐसी जोरू ला दे जल्दी
जैसी बतलाती थी दादी
न पाँच फीट से छोटी हो
न अधिक खरी न खोटी हो
हो चंट चुस्त चालाक किंतु
दिखलाई दे सीधी-सादी ||
दलित जी की रचनाओं का प्रकाशन देश की अनेक पत्रिकाओं में हुआ | उन दिनों नागपुर से-नागपुर टाइम्स, नया खून, लोक मित्र,नव प्रभात ,जबलपुर से –प्रहरी, ग्वालियर से ग्राम-सुधार, नव राष्ट्र, बिलासपुर से पराक्रम, चिंगारी के फूल, छत्तीसगढ़ सहकारी संदेश , दुर्ग से- साहू संदेश, जिंदगी, ज्वालामुखी , चेतावनी, छत्तीसगढ़ सहयोगी, राजनांदगाँव से जनतंत्र आदि पत्रिकाओं में इनकी कवितायें छपती रहती थीं |
दलित जी का जीवन अत्यंत संघर्षमय और अभावग्रस्त रहा | यही कारण है कि हजारों की संख्या में लिखी हुई अपनी रचनाओं का प्रकाशन वे नहीं करा पाये. सन् 1965 में पतिराम साव ,मंत्री हिंदी साहित्य समिति , दुर्ग के सहयोग से एक मात्र काव्य-संकलन “सियानी-गोठ” का प्रकाशन हो पाया. यह संकलन स्व.घनश्याम सिंह गुप्ता को समर्पित है. जिसमें तत्कालीन विधायक स्व.उदय राम वर्मा का संदेश है | “सियानीगोठ” काव्य संकलन कुण्डली शैली में लिखी गई है जिनमें 27 कुण्डलियों का समावेश है | उल्लेखनीय है कि कुण्डलियों के सभी कवि बीच में अपना नाम जरूर डाला करते थे लेकिन दलित जी ने कहीं भी अपना नाम नहीं डाला है | इसका लाभ समय-समय पर कुछ लोगों ने उठाया और दलित जी की रचना पर अपना अधिकार जताया है | यह संकलन विविध विषयों पर आधारित है | इसमें आध्यात्मपरक रचनायें हैं जैसे “पथरा”शीर्षक से – 
“ भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आयँ
 कोन्हों खूँदे जायँ नित, कोन्हों पूजे जायँ ” 
इस संकलन में हास्य रस, मानवीय सम्वेदना, जानवरों के नाम पर, राष्ट्र-प्रेम, दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं पर,  विज्ञान की स्वीकारोक्ति है – 
आइस युग विज्ञान के, सीखो सब विज्ञान
सुग्घर आविष्कार कर, करो जगत कल्यान 
सरकारी योजनाओं पर जैसे पंचायती राज शीर्षक से –
हमर देश मा भइस हे, अब पंचयात राज
सहराये लाइक रथय, येकर सब्बो काज 
विविध शीर्षकों पर लिखित ये कवितायें दलित जी के आधुनिक, वैज्ञानिक, समाजवादी और प्रगतिशील दृष्टिकोण होने के परिचायक हैं | उनकी अन्य रचनायें जिन्हें प्रकाशन की प्रतीक्षा है, वे हैं –
पद्य – हमर देस, कनवा समधी, दू मितान, प्रकृति वर्णन, बाल कविता और कृष्णजन्म | गद्य – अलहन, कथा-कहानी | प्रहसन, लोकोक्तियाँ, बाल-निबंध और शब्द-भण्डार आदि हैं |
दलित जी की स्मृति में 5 मार्च 1989 को उनकी 67 वीं जयंती रायपुर में मनाई गई | चंदैनी-गोंदा और कारी के निर्माता राम चंद्र देशमुख ने दलित जी का स्मरण करते हुये कहा – वे छत्तीसगढ़ के इतने ख्यात नाम व्यक्ति थे जिनके निधन का समाचार मुझे बम्बई के वहाँ के अखबारों में मिला| चंदैनी गोंदा के प्रथम प्रदर्शन में प्रथम गीत दलित जी का था | नाम के भूखे न रहने वाले दलित जी की “नाम”  शीर्षक से प्रकाशित अंतिम कविता देखिये -
रह जाना है नाम ही, इस दुनियाँ में यार
अत: सभी का कर भला, है इसमें ही सार
है इसमें ही सार, यार तू तज के स्वारथ
अमर रहेगा नाम,किया कर नित परमारथ
कायारूपी महल, एक दिन ढह जाना है
किंतु सुनाम सदा दुनियाँ में रह जाना है || 
(दैनिक अमर किरण और विनोद साव से साभार)

Wednesday, September 25, 2013

छाँव इन्हीं की सारे तीरथ.....


     
  (चित्र ओपन बुक्स ऑन लाइन से साभार)


आल्हा छंद (16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु)

बीते कल ने  आने वाले , कल का थामा झुक कर हाथ
और कहा कानों में चुपके , चलना सदा समय के साथ ||

सत्-पथ पर पग नहीं धरा औ कदम चूम लेती है जीत
अधर  प्रकम्पित हुये नहीं औ , बात समझ लेती है प्रीत ||

है  स्पर्शों  की  भाषा न्यारी , जाने  सिखलाता  है कौन
बिन उच्चारण बिना शब्द के, मुखरित हो जाता है मौन ||

कहें  झुर्रियाँ  हमें  पढ़ो  तो , जानोगे  अपना  इतिहास
नहीं भटकना  तुम पाने को , कस्तूरी की मधुर सुवास ||

बड़े - बुजुर्गों  के   साये   में  ,  शैशव  पाता  है  संस्कार
जो आया की गोद पला हो , वह  क्या जाने लाड़-दुलार ||

बूढ़े   पर   हैं  अनुभव धारे, छू कर  पा लो उच्च उड़ान
छाँव  इन्हीं की  सारे  तीरथ , इनमें ही  सारे भगवान ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)