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Tuesday, July 30, 2013

गज़ल : मेरा भी दौर था.....



इसी  आंगन  सदा  साया रहा हूँ
भरे  सावन में  भी  सूखा रहा हूँ ||

नज़र की रोशनी जिस पर लुटाई
उसी की आँख  में  चुभता रहा हूँ ||

जवानी खो  गई थी परवरिश में
सदा   तेरे   लिये   बूढ़ा  रहा  हूँ ||

मुझे  तू  भूल  कर  परदेश  बैठा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

मशीनों आज का है दिन तुम्हारा
मेरा भी  दौर था  चरखा रहा हूँ ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर (मध्यप्रदेश)

(ओबीओ लाइव तरही मुशायरा में शामिल मेरी गज़ल)

Monday, July 22, 2013

दोहा छंद :


वसुधा है माता सदृश,आँचल इसका थाम
माँ  की  पूजा  में  बसे  , सारे  तीरथ-धाम  ||

हाथ सृजन करने मिले,करता किंतु विनाश
शेष नाग कर को बना, थाम धरा आकाश ||

बलशाली है बुलबुला , यह हास्यास्पद बात
कुदरत से  लड़ने  चला, देख  जरा औकात ||

काट काट कर बाँटता, निशदिन देता पीर
कब तक आखिर बावरे , धरती धरती धीर ||

करती है  ओजोन की, परत कवच का काम
उसको खंडित कर रहा, सोच जरा परिणाम ||

बाँझ  मृदा  होने  लगी  , हुई  प्रदूषित  वायु
जल  जहरीला  हो रहा , कौन होय दीर्घायु ||

अनगिन  ग्रह  नक्षत्र  में , वसुन्धरा ही एक
जिसमें  जीवन - तत्व हैं , इसको माथा टेक ||

अरुण कुमार निगम
अदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर(मध्यप्रदेश)

Tuesday, July 16, 2013

क्या बिसात है अपनी


गये   तुरंग  कहाँ  अस्तबल  के  देखते हैं
कहाँ से  आये गधे  हैं निकल के देखते हैं

सभी ने  ओढ़  रखी  खाल शेर की शायद
डरे - डरे से  सभी  दल  बदल  के देखते हैं

वही  तरसते यहाँ  चार  काँधों की खातिर
सभी के  सीने पे जो मूँग दल के देखते हैं

वो   आज   थाल   सजाये   हुये   चले  आये
जिन्हें  हमेशा  बिना नारियल के देखते हैं

बड़ों-बड़ों  में  भला  क्या  बिसात है अपनी
अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

(ओपन बुक्स ऑन लाइन तरही मुशायरा,अंक-36 में सम्मिलित  दूसरी गज़ल)

Sunday, July 14, 2013

सूरत बदल के देखते हैं.....


चलो जहान की  सूरत  बदल के देखते हैं
पराई आग में  कुछ रोज  जल के देखते हैं

कहा सुनार ने सोना निखर गया जल के
किसी सुनार के हाथों पिघल के देखते हैं

कभी  कही  न  जुबां से गलत सलत बातें
हरेक  बात  पे   मेरी  उछल  के  देखते  हैं 

अभी  उड़ान  से  वाकिफ  नहीं  हुये  बच्चे
हमारे  नैन  से  सपने  महल के  देखते हैं  

जरा  सबर  तो रखो होश फाख्ता न करो
अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं 

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)