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Tuesday, April 30, 2013

अनकहा पैगाम...


अनकहा पैगाम...

बहुरिया के हाथ कच्चा आम है
सास खुश है, अनकहा पैगाम है |

वो समझता ही नहीं संकेत को
क्या कहूँ वो पूरा झण्डू बाम है |

झुनझुने के शोर से चुप हो गया
आम इंसां का यही तो काम है |

काम धंधे से मिली फुरसत हमें
साँझ पूजा , सुबह प्राणायाम है |

छोड़ आए हम जमाने की फिकर
अब कहीं जाकर मिला आराम है  |

अरुण कुमार निगम
आदित्यनगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Friday, April 26, 2013

साँझा चूल्हा खो गया...


कुण्डलिया छंद

साँझा चूल्हा खो गया,रहा न अब वो स्वाद
शहर लीलते खेत नित , बंजर करती खाद
बंजर  करती  खाद , गुमे  मिट्टी के  बरतन
भूख खड़ी बन प्रश्न , हाय कैसा परिवर्तन
जीवन  एक   पतंग ,  और   महंगाई  माँझा
रहा न अब वो स्वाद,खो गया चूल्हा साँझा ||


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Monday, April 22, 2013

वीर छन्द : छत्तीसगढ़ी में



(चित्र ओबीओ/गूगल से साभार)
ओपन बुक्स ऑनलाइन ,चित्र से काव्य तक छंदोत्सव,
अंक-२५ में मेरी रचना
 (वीर छंद या आल्हा सजता, अतिशयोक्ति से बड़ा नफीस 
  मात्राओं की गणना इसमें , सोलह-पन्द्रह कुल इकतीस   
  अन्त में गुरु,लघु )

महूँ  पूत  हौं  भारत  माँ    के, अंग - अंग मा  भरे  उछाँह 
छाती का  नापत हौ  साहिब ,  मोर कहाँ तुम पाहू थाह ॥ 
देख गवइहाँ झन हीनव तुम, अन्तस मा बइठे महकाल  
एक नजर देखवँ  तो तुरते,  जर जाथय बइरी के खाल  
सागर - ला  छिन - मा पी जाथवँ,  छर्री-दर्री  करवँ पहार 
पट-पट ले दुस्मन मर जाथयँ,मन-माँ लाववँ  कहूँ बिचार ॥  
भगत सिंग के बाना दे दौ  , अंग - भुजा  फरकत हे मोर 
डब-डब  डबकय लहू लालबम, अँगरा हे आँखी के कोर ॥ 

मयँ हलधरिया सोन उगाथवँ, बखत परे धरिहौं बन्दूक ॥ 
उड़त चिरैया  मार  गिराथवँ  , मोर निसाना बड़े अचूक ॥    
बजुर  बरोबर  हाड़ा - गोड़ा  , बीर  दधीची  के  अवतार 
मयँ  अर्जुन  के  राजा बेटा , धनुस -बान हे मोर सिंगार ॥ 
चितवा कस चुस्ती जाँगर- मा, बघुआ कस मोरो हुंकार 
गरुड़ सहीं मयँ गजब जुझारू, नाग बरोबर हे फुफकार ॥  
अड़हा अलकरहा दिखथवँ मयँ, हाँसव झन तुम दाँत निपोर 
भारत-माता के  पूतन ला , झन  समझव  साहि ब कमजोर ॥
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शब्दार्थ : महूँ = मैं भीउछाँह = उत्साह, मोर = मेरा, पाहू = पाओगे, हीनव = उपेक्षित करना, जर जाथय = जल  जाती है, अँगरा = अंगार,  छर्री-दर्री करवँ पहार = पर्वत को चूर चूर करता हूँबजुर = वज्र, चितवा = चीताजाँगर = देहयष्टि, मोरो = मेरी भीअड़हा = गँवारअलकरहा = विचित्र -सादाँत निपोर = दाँत दिखा कर हँसना, झन = मत 
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Tuesday, April 16, 2013

उड़ी चिरैया फुर्र रे.


काऊ माऊ काऊ माऊ
उड़ी चिरैया फुर्र रे.
 

दादा जी के सुन खर्राटे
घुर घुर घुर घुर घुर्र रे
काऊ माऊ काऊ माऊ
उड़ी चिरैया फुर्र रे.

घर में है नन्हा –सा टॉमी
पूँछ हिला कर करे सलामी
आये कोई अनजाना तो
करता गुर गुर गुर्र रे.
काऊ माऊ काऊ माऊ
उड़ी चिरैया फुर्र रे.

तपत कुरू कहता है मिट्ठू
उसको मिर्च खिलाये बिट्टू
मन ललचाये,खुद भी खाये
करता सी - सी  सुर्र रे.
काऊ माऊ काऊ माऊ
उड़ी चिरैया फुर्र रे.

चुपके आया चूहा चीं चीं
ज्यों बिट्टू ने आँखें मीचीं
बिस्कुट लेकर बिल में भागा
खाता कुर कुर कुर्र रे.
काऊ माऊ काऊ माऊ
उड़ी चिरैया फुर्र रे.

मोटर लाये मोनू भैया
चले घूमने झुमरीतलैया
इठलाती बलखाती गाड़ी
चलती भुर भुर भुर्र रे.
काऊ माऊ काऊ माऊ
उड़ी चिरैया फुर्र रे..........


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Saturday, April 13, 2013

ढम्म लला – बाल गीत


ढम्म लला, ढम्म लला
ढम ढम ढम ढम
झूम झूम नाचूँ मैं
छम छम छम छम

गड़ गड़ गड़, गरड़ गरड़
बदरा करे
रिमझिम रस बरसाता
सावन झरे
बिजुरी भी चमक रही
चम चम चम चम ||

सर सर सर, सरर सरर
बहती हवा
दे सबको शीतलता
कहती हवा
तरुवर भी झूम रहे
झम्मक झम झम ||

फड़ फड़ फड़, फड़क फड़क
नाच रहे मोर
दादुर पपीहे भी
करते हैं शोर
खेल नहीं वसुधा से
थम थम थम थम ||

जल जल जल, जाये ना
धरती कहीं
पानी बचाओ, वन
काटो नहीं
भटक भटक जाये ना
सुंदर मौसम ||


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)