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Tuesday, February 19, 2013

कुण्डलिया छंद :


भेजे  में  घुसता  नहीं ,  राजनीति  का  खेल
हमने सीखा बंधुवर  ,  दिल से दिल का मेल
दिल से दिल का मेल ,जात औ’ पात न जाने
चेहरे का  क्या  काम  ,  धड़कनों से पहचाने
प्रेम - मार्ग चल ‘अरुण’ ,नयन में नेह सहेजे
हृदय   देत   विश्वास  ,   घात   देते   हैं   भेजे ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

12 comments:

  1. कन्नी अक्सर काटते, राजनीति से मित्र |
    गिन्नी जैसी किन्तु यह, चम्-चम् करे विचित्र |
    चम्-चम् करे विचित्र , बड़े दीवाने इसके |
    चाहे जाय चरित्र, मरे चाहे वे पिसके |
    करते रहते खेल, कमीशन काट चवन्नी |
    आ के पापड़ बेल, काट ना यूं ही कन्नी ||

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  3. भेजे पर मत जाइए करता तर्क - कुतर्क
    दिल की सुनिए बात फिर नहीं पड़ेगा फर्क ।

    बहुत सुंदर कुंडली ।

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  4. बिलकुल सही लिखा दिल से दिल के मेल में जात-पात नही होता.

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  5. बहुत बढ़िया छंद....
    अर्थपूर्ण!!

    सादर
    अनु

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  6. दिल से दिल का मेल ,जात औ’ पात न जाने
    चेहरे का क्या काम , धड़कनों से पहचाने ..

    वाह अरुण जी ... मज़ा आ गया सुबह सुबह मधुर छंद दिल में उतर गया ...

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  7. वाह अरुण जी बहुत बढ़िया कुण्डली |
    आशा

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  8. राजनीति जैसा मजा,नाही दूसरा मित्र,
    एमपी एमएलऐ बनो,महको जैसे ईत्र

    महको जैसे ईत्र,नही कुछ करना धरना
    कार्यक्षेत्र में बस,कभी-कभी जाते रहना

    जनसेवा की आड़,कार्य है परम पुनीत
    झोली भर लो आप,कहाये ये राजनीत,,,,


    Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,

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  9. बढ़िया कुण्डलिया छंद....

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  10. अति आनंददायी छंद..

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  11. आपके छंद बहुत अच्छे हैं .

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  12. आपका छंद अच्छा लगा। धन्यवाद।

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