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Monday, January 28, 2013

डॉक्टर आशीष और डॉक्टर प्रिया निगम के शुभ विवाह की द्वितीय वर्ष-गाँठ





सुभ-बिहाव के दूसरा  , साल गिरह हे आज 
प्रिया अऊ आशीष तुम, करव  मया माँ राज 
करव  मया माँ राज,सदा सुख बाँटत जावव 
खूब सफलता पाव  , मया के रस बरसावाव 
सब्बो मन गुण गायँ ,तुंहर  सुग्घर सुभाव के
हमर बधाई लेव   , सुमंगल सुभ-बिहाव के  ।।

निगम परिवार 










Sunday, January 27, 2013

धीरज मन का टूट न जाये





(चित्र ओपन बुक्स ऑन लाइन से साभार) 
ओपन बुक्स ऑन लाइन द्वारा आयोजित चित्र से काव्य तक छंदोत्सव अंक-22
में मेरी छंद चौपाई http://www.openbooksonline.com/

छंद - चौपाई (16 मात्राएँ)

बिटिया हाथ लिये है फाँसी
याद आ गई हमको झाँसी |
आँखों में है भड़की ज्वाला
कौन यहाँ पर है रखवाला |
घूम  रहे  सैय्याद  दरिन्दे
विचरण कैसे करें परिन्दे |
कोई  कन्या - भ्रूण सँहारे
कोई   बिछा   रहा  अंगारे |
कहीं नव-वधू गई जलाई
जाने  कब से  गई सताई |
नैतिक पतन हुआ है भारी
अपमानित  होती  है नारी |
नैतिक शिक्षा बहुत जरूरी
बिन इसके ज़िंदगी अधूरी |
धीरज मन का टूट न जाये
जल्दी कोई न्याय दिलाये |

इसी आयोजन में अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर मेरी छंदात्मक प्रतिक्रियाएँ

छंद – दोहा
(विधान – प्रथम व तृतीय चरणों (विषम) में 13 मात्राएँ, द्वितीय व चतुर्थ चरणों  (सम) में 11 मात्राएँ | अंत में दीर्घ लघु |)
(1)
त्रेता द्वापर काल के,खींच दिये हैं चित्र
दोहे मन को छू रहे बहुत बधाई मित्र |
(2)
रक्षक ही भक्षक बने , खूब कही है बात
न्याय व्यवस्था पर हुई,छंदों की बरसात |
(3)
अक्षर में चिंगारियाँ  शब्दों में अंगार
भींच गई हैं मुट्ठियाँ,होठों पर ललकार |
(4)
नैतिक शिक्षा लुप्त हैगुम होते संस्कार
कोई तो इस बात पर थोड़ा करे विचार |
(5)
दोहा और घनाक्षरी ,  एक रंग दो फूल
भाव उकेरे चित्र के,हमने किया कबूल ||

छंद – कुण्डलिया
(विधान – छ: चरण. प्रथम दो चरण दोहा अर्थात 13-11 मात्राएँ, शेष चार चरण रोला अर्थात 11-13 मात्राएँ, प्रारम्भ में प्रयुक्त शब्द ही कुण्डलिया का अंतिम शब्द होता है.दोहे के दूसरे सम चरण से रोले का प्रारम्भ)
(1)
फाँसी से कमतर सजा , किसे भला मंजूर
नर - पिशाच  ये  भेड़िये  हैं अपराधी क्रूर
हैं  अपराधी  क्रूर  , इन्हें नहिं बख्शा जाये
न्याय मांगते 'धीर' ,  हृदय में  आग छुपाये
कड़ा बने कानून चुभे फिर से ना नश्तर
किसे भला मंजूर सजा फाँसी से कमतर ||
(2)
काँपें दुष्कर्मी  सजा ऐसी दियो सुझाय
अंग-भंग करके उन्हें ,सूली पर लटकाय
सूली पर लटकाय चढ़ा दें फौरन फाँसी
लेवे दुनियाँ सीखबात ये नहीं जरा-सी
सिद्ध हुआ अपराध, गला फौरन ही नापें
सजा सुझाई खूब ,जिसे सुन पापी काँपें ||
(3)
भोली  जनता  सह  रही  ,  कैसे  कैसे तीर
कुण्डलिया ने खींच दी,उन सबकी तस्वीर
उन सबकी तस्वीर,विविध हैं दृश्य दिखाये
हम  अपने  ही  देश  , लग  रहे  आज पराये
फाँसी  फंदा  हाथ  ,  दहकती दिल में होली
कैसे - कैसे  तीर सह  रही  जनता  भोली ||
(4)
फाँसी मिलनी चाहिए सबके  मन की साध
दिल्ली का दुष्कर्म तो ,  है  जघन्य  अपराध
है  जघन्य  अपराध ,  सजा  फाँसी का  फंदा
सूली   पर  दो  टांग   मिले   दुष्कर्मी   बंदा
धधक  रहा  है  हृदय आँख में  बसी उदासी
सबके मन की साधचाहिये मिलनी  फाँसी ||
(5)
कोई भी समझे   नहीं ,  नारी को  भूगोल
माँ भगिनी बेटी  यही , ममता दे अनमोल
ममता दे अनमोल ,कटी हैं क्योंकर पाँखें
नर पिशाच की आजफोड़िये दोनों आँखें 
अम्बरीश  के   छंद ,  आतमा  पढ़ के  रोई
नारी  को  भूगोल नहीं समझे अब कोई ||
(6)
कहीं सुलगते प्रश्न हैं,कहीं जेठ की धूप
दिव्य दृष्टि से  देखते संजय चंडी रूप
संजय चंडी रूप  , कहीं  फाँसी का फंदा
ग्रहण ग्रसे किस ठौर,बड़ा सहमा है चंदा
देखा है  हर बार यहाँ अपनों को ठगते
कहीं जेठ की धूपप्रश्न हैं कहीं सुलगते ||
(7)
संजय मिश्र हबीब जी, कहते आप सटीक
सीधे - सादे शब्द में ,  बात   बड़ी  बारीक
बात  बड़ी  बारीक ,  दिशाएँ  नई दिखाते
प्रश्न उठाते  आप ,  साथ ही  हल बतलाते
मछली की जो आँख , भेद दे वही धनंजय
दिव्य दृष्टि से देखसके कहलाता संजय ||
(8)
कुंडलियाँ दोनों  करे  ,  हैं परिभाषित  चित्र
नित बढ़ते अपराध से , सब ही चिंतित मित्र
सब ही चिंतित मित्र,  कुकर्मी को  हो फाँसी
नहीं नारि के नैन   कभी भी  आय उदासी
सदा हँसें आजाद  बाग की  सारी कलियाँ
परिभाषित कर चित्र,लिखें बागी कुंडलियाँ ||

छंद - घनाक्षरी 
(विधान - यह मनहरण कवित्त कहलाता है.प्रत्येक चरण में 16, 15 अर्थात् कुल 31 वर्ण. अंत में  गुरु.  8, 8, 8, 7 वर्णों पर यति) 
(1)
अलबेला खत्री   भाई ,खूब रची  कविताई,
 राह  नई   दिखलाई ,  जोरदार   तालियाँ
दानवों के कर्म देखे ,मानवों के मर्म देखे,
तेवर   हैं  गर्म   देखे  ,  बार -बार तालियाँ
शहीदों  का  मान  रहे  , भारत  महान  रहे
आन   बान   शान   रहे  हैं हजार तालियाँ
बदनाम हो ना जाये ,फाँसी वाला फंदा हाये,
तरीका   भला   सुझाये  ,बेशुमार   तालियाँ ||
(2)
अलग – अलग  छंद  आया   पढ़के  आनंद
शब्द – शब्द   मकरंद   ,   रस   बरसाया  है
वाह   रकताले   भाई   छंदों में  ही कविताई
छंद   घनाक्षरी    पढ़     मन   भर   आया है |
नारियों   की   लाज  रहे , उन्नत समाज रहे
सब   ही   स्वतंत्र   रहें  ,  खूब   बतलाया   है
पापियों का नाश होवेदुष्टों का विनाश होवे
दामिनी  की  मौत  ने तोदेश को जगाया है |

(विधान के अनुसार अंत में लघु-गुरु ही आना चाहिये) 

छंद - कामरूप 
(विधान – चार चरण, प्रत्येक में 9, 7, 10 मात्राओं पर यति ,चरणांत में गुरु व लघु)
इससे  बेहतर चित्र  सुंदर देख  पाया  कौन
कविता बहे क्या,अब कहे क्यालेखनी है मौन
आलोक बिखरेसृष्टि निखरे,नष्ट हों सब पाप
हो हृदय गंगाबदन चंगाहम करें यह जाप ||

छंद – रूपमाला ( या मदन छंद)
(चार चरण , प्रत्येक में 14, 10 मात्राओं पर यति देकर कुल 24 मात्राएँ, अंत में दीर्घ व लघु)
सामयिक हैं प्रश्न सारे,क्यों बढ़ा है पाप
दिन ब दिन हालत बुरी है,बढ़ रहा संताप
भावनाओं  को  समेटे ,  रूपमाला  छंद
सच कहूँ संजय इसे पढ़,आ गया आनंद ||

छंद – मदन
(चार चरण , प्रत्येक में 14, 10 मात्राओं पर यति देकर कुल 24 मात्राएँ, अंत में दीर्घ व लघु)
वाह  कितना   खूबसूरत ,  रच दिया  है छंद
चित्र  परिभाषित  है  करता ,  हृदय  अंतर्द्वंद
अशोक  रक्ताले  प्रभु  जी  ,  सार्थक  हैं  भाव
निकलनी ही चाहिये दुख,भँवर से अब नाव ||

छंद – राधेश्यामी 
(विधान - मात्रायें 16,16)
भ्राता नीरज का छंद पढ़ा ,  है  शब्द चित्र क्या खूब गढ़ा
आक्रोश  दिखा  है जोश दिखा, आवेग हृदय में खूब बढ़ा
कानून व्यवस्था की  चिंता , परिवर्तन  निश्चित  लायेगी
इस आशा में है कवि का मनवह सुबह कभी तो आयेगी ||

छंद - मत्तगयंद (मालती) सवैया
(विधान – हर चरण में 7 भगण (SII) अंत में दो गुरु,कुल 23 वर्ण)
(1)
दीप जले अँधियार मिटे , सब दोषिन को अब होवय फाँसी
छंद लिखे  मन भाय गये  ,  सनदीप पटेल  न होय उदासी
मोहन  देख  दशा   हमरी  अवतार धरो फिर भारत आवौ
कंस न दम्भ करे फिर से,इस देश की आकर लाज बचावौ  ||
(2)
दुर्मिल छंद  कहें अति सुंदर ,  भ्रात अशोक हमें मन भायें
नैतिकता पर जोर दिया, अनिवार्य इसे अब नित्य पढ़ायें
रात जहाँ परभात नहीं , उस ठौर दिया सब लोग जलायें
फौरन दुष्टन को पकड़ेंततकाल उसे गल-फाँस चढ़ायें ||
छंद – दुर्मिल सवैया
[विधान – प्रत्येक चरण में 8 सगण (IIS) कुल 24 वर्ण]
(1)
जब दुर्मिल छंद पढ़ा हमने  , उफ आग हिया झुलसाय गई
मन भाव 'विशालबताय रहे   ,  हर बात हमें तड़फाय गई
अब दंड मिले हर दोषिन को , यह मांग जुबां पर आय गई
अपराधहिं के सम मौन सखा,यह बात हमें अति  भाय गई ||
(2)
ढिबरी  बुझती  पर रात सखा  ,  परभात बिना कभु आवत है
मत आस बुझे  नहिं प्यास बुझे , विधुना सबको समझावत है
उसके  घर  में  अति  देर  सही ,  अनधेर नहीं  अब मान जरा
उत न्याय मिले कुछ देर सही,यह सत्य सखा अब जान जरा ||
  
छंद - त्रिभंगी 
(विधान – चार चरण, प्रत्येक में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति ,कुल 32 मात्राएँ) 
(1)
रसधार  बही  है  खूब  कही है अम्बर सौरभछाया है
हम हैं आनंदितबहुत अचम्भित , यह छंदों कीमाया है
हम सीख रहे हैंसंग बहे हैं ,पुलकित यह मनकाया है
ज्यों मुरलीधर ने मन को हरनेगीत प्रेम कागाया है ||
(2)
सुंदर  बहुरंगी छंद  त्रिभंगी हमने  पढ़ कर यह जाना
है  खूब  रसीला ,  छैल छबीला  हमने  भी लो पहचाना
है  यह  मधुशाला  की मधुबालामदिरालय कापैमाना
दस आठ गिना यह , आठ बाद छ: ,  है छंदों मेंमस्ताना ||
(3)
है   चित्र   हूबहू ,  शब्द  में   लहू  लावा   बन कर  बहता है
चिन्तित जग साराकौन सहारा,चीख-चीख करकहता है
अबला  बेचारी   है  दुखियारी   हृदय  आग - सा  दहता है
क्या खूब लिखा हैसौरभ जी सत ,साहित शाश्वत ,रहता है ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़) /
विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Tuesday, January 22, 2013

डॉ.चैतन्य और डॉ.रूपम को शुभ-कामनायें




                         
            ज्येष्ठ पुत्र चैतन्य और पुत्र वधू रूपम को शुभ-विवाह की द्वितीय वर्षगाँठ पर                                                    हार्दिक शुभकामनायें           
          रूपम औ  चैतन्य को ,  बहुत बधाई आज
          जीवन में हर पल करें ,दोनों सुख से राज
          दोनों  सुख से  राज ,  यही आशीष हमारा
          सदा दमकता रहे,भाग्य का स्वर्णिम तारा
          मंगलमय हो दिवस,तुम्हारी रात हो पूनम
          बहुत बधाई आज , प्रिय  चैतन्य औरूपम ||
    निगम  परिवार

Sunday, January 20, 2013

दो बूँद जिनगी के............


श्रीमती सपना निगम


पल्स पोलियो अभियान - जनहित में जारी


दो   बूँद जिनगी  के  , बन जाहे   वरदान
बात  मोर  सुन ले  , गाँठ बाँध ले मितान.

अपन  नोनी - बाबू  के  , जिनगी  सँवारव
पोलियो  अभिशाप हरे  ,  उन ला उबारव
जन - हित के  खातिर , चलत हे अभियान
बात  मोर  सुन ले  , गाँठ बाँध ले मितान.

तुरते  जनम   धरे रहे ,  वहू ला पियावव
नान नान लइका ला, कोरा मा धर के आवव
पाँच  साल तक लइका के करे रहिहौ ध्यान
बात  मोर  सुन ले  , गाँठ बाँध ले मितान.

स्वस्थ   रही  लइका , सँवर  जाही  पीढ़ी
देश  के  बुलंदी  के   बन   जाही  सीढ़ी
पोलियो - उन्मूलन बर , चलत हे अभियान
बात  मोर  सुन ले  , गाँठ बाँध ले मितान.

दो   बूँद जिनगी  के  , बन जाहे   वरदान
बात  मोर  सुन ले  , गाँठ बाँध ले मितान.

श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
 
[शब्दार्थ : बन जाहे = बन जाएगा, मितान = मित्र, उन ला = उन्हें,  नोनी-बाबू = बेटी-बेटा, वहू = उन्हें भी, पियावव = पिलाइये, नान नान लइका = नन्हें नन्हें बच्चे, कोरा मा = गोद में,मोर = मेरी]