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Friday, September 28, 2012

‘रेणु’ से ‘दलित’ तक


                                                     

  फणीश्वर नाथ रेणु     (चित्र गूगल से साभार)         कोदूराम 'दलित'

 

   -पं. दानेश्वर शर्मा

एक था ‘रेणु’ और दूसरा था ‘दलित’ | दोनों का सम्बंध जमीन से था | रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में हुआ | दलित का जन्म छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के अर्जुंदा टिकरी गाँव में हुआ | दोनों ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े | रेणु कथाकार थे और दलित कवि | दोनों साहित्यकार थे | रेणु का जन्म 4 मार्च को हुआ और दलित का जन्म 5 मार्च को | बसंत दोनों की प्रकृति में था | वैवाहिक जीवन भी दोनों का एक ही प्रकार का था | रेणु कथा साहित्य में लोक भाषा के शब्दों का सटीक प्रयोग करते थे और दलित लोक भाषा के अधिकारी कवि थे | 

4 मार्च को जब भिलाई में अंतरंग साहित्य समिति ने रेणु श्रद्धास्मरण का आयोजन किया, तब दलित जी का भी स्मरण किया गया | शब्दानुशासनम् के रचनाकार ने जब लोकेवेदे च कहा तब सम्भवत: यह ध्यान में रहा होगा कि लोक शब्द वेद के पहले आ गया है | लोक की यह प्राथमिकता श्लाघनीय है क्योंकि लोक जीवन स्वस्थ जीवन है | लोक संस्कृति भारतीय संस्कृति है तथा लोक साहित्य शाश्वत साहित्य है |

 लोक जीवन सरल , पवित्र तथा निश्छल होता है | रेणु के अनुभव संसार पर अपना आलेख पढ़ते हुए वेद प्रकाश दास ने पिछले दिनों रेणु तथा नागार्जुन के अंतरंग सम्बंधों की चर्चा की | बड़ा रोचक संस्मरण है |

नागार्जुन जी रेणु जी के घर कई बार गये लेकिन संयोगवश रेणु जी उस समय घर से बाहर होते थे | एक दिन बमुश्किल भेंट हो गई तो नागार्जुन जी बरस पड़े – कहाँ चले जाते हो जी ? कई बार आ चुका, लेकिन अब भेंट हो रही है | रेणु जी ने चुटकी ली – तुम मिलने के लायक दिखते कहाँ हो ? अपनी हालत देखो | मैले कुचैले कपड़े और अस्त व्यस्त हुलिया | नागार्जुन जी ने कहा साहित्यकार ऐसा ही होता है | रेणु जी ने कहा नहीं साहित्यकार ऐसा नहीं होता | मैं अभी बताता हूँ कि साहित्यकार कैसा होता है | यह कह कर और नागार्जुन जी को बैठा कर रेणु जी भीतर चले गये | थोड़ी देर बाद, शानदार वस्त्रों से सजधज कर ,बालों को करीने से सँवार कर और इत्र फुलेल की खुशबू से महकते हुए नागार्जुन जी के पास आकर खड़े हो गये और बोले देखो साहित्यकार ऐसा होता है | फिर दोनों के ठहाके |

 

दलित जी भी साफ सुथरे व्यक्ति थे | उन्हें किसी तरह की लाग लपेट पसंद नहीं थी | सच बात कहने में वे थोड़ा भी नहीं हिचकते थे | इत्र के भी शौकीन थे | एक बार नागपुर आकाशवाणी केंद्र द्वारा आयोजित कवि गोष्ठी में अन्य कवियों के अतिरिक्त दलित जी, मैं और बिलासपुर के स्व. सरयू प्रसाद त्रिपाठी मधुकर भी आमंत्रित थे | हम तीनों मोर भवन ( तत्कालीन हिंदी साहित्य सम्मेलन का कार्यालय भवन ) से आकाशवाणी जाने के लिए निकले | रास्ते में लिबर्टी चौक पर स्थित एक सेलून में दलित जी ने दाढ़ी बनवाई और इत्र लगाने के बाद आकाशवाणी केंद्र की ओर रवाना हुए | इस पर मधुकर जी ने चुटकी ली – रेडियो में केवल आवाज सुनाई पड़ती है ,दलित जी | चेहरा मोहरा नहीं दिखता | दलित जी ने तुरंत जवाब दिया – का होगे महाराज ? आदमी ला साफ सुथरा रहना चाही अउ  साफ सुथरा दिखना घलो चाही | एमे मन परसन रइथे  |

आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाई में रेणु जी और दलित जी का योगदान है | रेणु जी ने जेल की यातना सही | दलित जी जेल नहीं गये किंतु अनेक देशभक्त तैयार किए | उन्होंने छात्रों में राष्ट्रीयता कूट-कूट कर भरी | अंग्रेजी शासन के खिलाफ उन दिनों एक शब्द बोलना भी अपराध था किंतु दलित जी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बहाने वातावरण बनाते रहे | उदाहरण के लिए अपनी कक्षा के छात्रों को वे राउत नाचा सिखाते थे और परम्परागत राउत दोहों के बदले छात्रों को राष्ट्रीय दोहा लिख लिख कर देते थे | दोहे इस प्रकार होते थे ‌ -

गांधी जी के छेरी भैया

दिन भर में-में नरियाय रे

ओकर दूध ला पी के भइया

बुढ़वा जवान हो जाय रे ||

सत्य अहिंसा के राम-बान

गांधी जी मारिस तान-तान |

रेणु और दलित दोनों ने 56 वर्ष की जिंदगी जी | पता नहीं, दोनों में इतना साम्य क्यों था ?

[छत्तीसगढ़ के किसी समाचार पत्र में प्रकाशित वरिष्ठ साहित्यकार पं.दानेश्वर शर्मा जी का यह लेख उन्होंने ही मुझे दिया था | कतरन में अखबार का नाम नहीं दिख पाया है. सम्बंधित समाचार पत्र के प्रति आभार |]

 *आज छत्तीसगढ़ के जनकवि स्व.कोदूराम दलित की 45 वीं पुण्यतिथि*

 

Thursday, September 27, 2012

गणपति गणराजा





            (चित्र गूगल से साभार)


ग्यारह दिन गणपति” “गणराजा
आकर  मोरी  कुटिया   विराजा.

सुबह साँझ नित आरती पूजा
गणपतिसम कोई देव न दूजा.

तन, मन,धन से सेवा भक्ति
जिसने भी  की  पाई शक्ति.

मस्तक बड़ा बुद्धि परिचायक
मुख-मुद्रा  अति  आनंददायक .

बड़े  कान हैं   सुनते  सबकी
दु:ख पीड़ाएँ हरते सबकी. 

मोदक प्रियका उदर विशाला
कहे  -  सभी की  बातें पचा जा.

सूँड़ कहे - नाक रखो ऊँची
मान  करेगी   सृष्टि समूची.

वक्रतुंड,   सिंह-वाहन धारे
ईर्ष्या-जलन,मत्सरासुर मारे.

परशुराम जी से युद्ध में टूटा
एक दाँत का साथ था छूटा.

एकदंत  तब  ही  से  कहाये
नशारूपी मदासुर को मिटाये.

बड़े पेट वाले   हे !  “महोदर
मोहासुर राक्षस का किया क्षर.

गज- सा मुख गजाननकहाये
लोभासुर को आप मिटाये.

लम्बा पेट लम्बोदरन्यारे
राक्षस क्रोधासुर संहारे.

विकटरूप मयूर पर बैठे
कामासुर का अंत कर बैठे.

विघ्न राजजी विघन विनाशे
शेषनाग वाहन पर विराजे.

धूम्रवर्णमूषक पर प्यारे
अभिमानासुर को संहारे.

ज्ञान बुद्धि   अउ आनंददायक
जय जय जय हो अष्ट विनायक”.

आज विसर्जन की घड़ी आई.
हुआ हवन अब झाँकी सजाई.

मूरत जाये ,प्रभु नहीं जाना
तुम भक्तों के हृदय समाना.

बहुत जरूरी अगर है जाना
अगले बरस प्रभु जल्दी आना.


श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़.

Tuesday, September 25, 2012

दोहे – हिन्दी


[दोहा – प्रथम और तृतीय (विषम) चरणों में 13 मात्राएँ. द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में  11 मात्राएँ . प्रत्येक दल में 24 मात्राएँ. अंत में एक गुरु ,एक लघु.]

हिन्दी भारतवर्ष में ,पाय मातु सम मान
यही हमारी अस्मिता और यही पहचान |

बनी राजमाता मगर ,कर ना पाई राज
माता की  यह बेबसी ,  बेटे  धोखेबाज |

माँ घर में बीमार है  ,  वाह विदेशी प्रेम
बेटा साहब बन गया और बहुरिया मेम |

गिटपिट बोलें आंग्ल में,करते इस पर गर्व
एक दिवस बस साल में ,  मना रहे हैं पर्व |

बालभारती गुम हुई,स्लेट कलम है लुप्त
बाढ़े कैसे बीज अब ,भूमि नहीं उपयुक्त |

देवनागरी लिपि सरल , पढ़ने में आसान
लिपि उच्चारण एक है ,हिन्दी बड़ी महान |

आंग्ल-प्रेम बढ़ता रहा,निज-भाषा रहि हेय
हिन्दी  ही  पहचान  है , रखिये  इसे  अजेय |


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)