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Monday, May 14, 2012

गाँव


टेढ़ी - मेढ़ी  पगडंडी  पर , चला  झूमता - गाता  गाँव
कभी छेड़ता बंसी की धुन,कजरी कभी सुनाता गाँव.
नित्य भोर पंछी की कलरव से श्रम का आव्हान करे
गोधुलि बेला, गायों के सँग, अब भी धूल उड़ाता गाँव.

चरर-मरर आवाज रहट की, ओहो तत तत बैलों संग
तपत -कुरू मिट्ठू से बोले , सबके सँग बतियाता गाँव.
सांझ ढले मंदिर - परिसर में , रामायण को बाँचा करे
ढोल,मँजीरा शंख बजाकर, मन में भक्ति जगाता गाँव.

बच्चों के सँग लुक्का- छिप्पी,गिल्ली- डंडा खेलता है
हू  तू तू तू खेल कबड्डी , युवकों को उकसाता गाँव.
बेटी खेले गुड्डा गुड़िया , फुगड़ी, बिल्लस अंगने  में
प्रौढ़-बुजुर्गों की खातिर तो, चौसर रोज बिछाता गाँव.

जेठ दुपहरी खेतों में  हल , चलते करमा गाते हुये
आता जब आषाढ़ महीना , फसलें खूब उगाता गाँव
मेघ - देवता  दया करें  तो, अनपूरना  का  वास  रहे
वरना आँसू पी पीकर के,अपनी प्यास बुझाता गाँव.

सावन –भादों , तीज- तिहारों, की मस्ती में झूमता है
क्वाँर महीना   श्रद्धा-पूजा, अंतर्ज्योति जलाता गाँव.
मने दशहरा, शरद पूर्णिमा -  घरों में मीठी खीर बने....
दीप जला कर माह कार्तिक, दीपावली मनाता गाँव.

अगहन पूस जले अंगीठी  ,तन को राहत मिले कहाँ
खलिहानों में जाग जागकर,सारी रात बिताता गाँव
माघ चलत है पवन -बसंती , टेसू- सेमल फुलवा खिले
महुआ से  महके  महुआरी , मस्ती में मदमाता गाँव.

ब्याह योग्य युवजन की खातिर, रिश्ते ढूँढे माता-पिता
राजी  दोनों  पक्ष  हुये  तब  , बात  वहीं  ठहराता  गाँव.
फसल बिकी ,लक्ष्मी घर आई, फागुन आया झूमा गाँव
फाग , नँगाड़े, पिचकारी  भर , होली रंग उड़ाता गाँव.

चैत  मास  शहनाई  बाजे, मंडप सजे , चली बारात
नई नवेली दुल्हन लेकर , खूब आज इतराता गाँव.
फिर आया  बैसाख  महीना , महक गई है अमराई 
मीठे- मीठे आम रसीले, खाता और खिलाता गाँव.

कंकरीट   के   वन   में   भटके  ,  गैरों और बेगानों   में
तुझे   शांति  की  राह  दिखाता , हौले से मुस्काता गाँव
अब भी  तुमको  अपना लेगा , ममता का आँचल है गाँव
पथिक चला आ, बाट जोहता,व्याकुल औ अकुलाता  गाँव.

(ओबीओ महोत्सव में शामिल कविता)

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अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Saturday, May 12, 2012

किसको घर कहता है पगल्रे


किसको घर कहता है पगले
दीवारें ही दीवारें
घास-फूस की छत है कहीं पर
ऊँची-ऊँची मीनारें.

तन से निकले प्राण पखेरू
काठी है तैयार खड़ी
फिर मखमल की सेज कहाँ
बस !अंगारे ही अंगारे.

जीवन भर का शोक मनाये
किसको इतनी है फुरसत
तीज-नहावन निपट गया फिर
नहीं सुनोगे चीत्कारें.

जो अपना घर कुरिया फूँके
वही हमारे संग चले
कोई कहता है यायावर
कोई कहता बंजारे.

दिल की अदला-बदली करके
हमने सारा जग जीता
नहीं माथ पर मुकुट हमारे
नहीं हाथ में तलवारें.

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अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Sunday, May 6, 2012

प्रज्ञा ,शील , करुणा



 (चित्र गूगल से साभार)
रचना- श्रीमती सपना निगम

शुद्धोदन     और    गौतमी    ने
नाजों   से    उसको   पाला   था
यशोधरा   की   मांग  सजी  थी
वह कपिलवस्तु का उजाला था.

राज     वैभव     त्यागे   उसने
छोड़े          सारे         मोहपाश
भिक्षाटन  की   राह   निकला
पहने     थे    भगवा    लिबास

अन्न - जल  त्यागा था  उसने
ज्ञान    की     थी     अभिलाषा
देह    को     भी    कष्ट   देकर
लगी          हाथ         निराशा.

भूखे  रह कर  कुछ न मिलता
यह    बात    उसने   जान  ली
प्राणियों    का    दु:ख    हरेगा
यह    बात   उसने   ठान   ली.
बैसाख     की     पूर्णिमा    थी
चाँद    ने    आस   जगाई   थी
बोधि – वृक्ष  के नीचे सुजाता
खीर      लेकर      आई     थी.

अन्न      से      तृप्ति      मिली
यह     बात    उसने   जानी  है
देह     को    जो    कष्ट   देता
वह       बड़ा       अज्ञानी     है.

उसके    दोनों     चक्षुओं    में
प्रज्ञा       की      गहराई     है
मन      की     अंतर्वेदना    में
करुणा    असीम    समाई  है.

आँख     मूँदे     बैठा    है   वो
ज्ञान     चक्षु      खोल    कर
धम्म      के    उपदेश     देता
वाणी   में   अमृत   घोल कर.

श्रीमती  सपना  निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

Saturday, May 5, 2012

बुद्ध पूर्णिमा पर गीत -पंचशील के अनुगामी


(चित्र गूगल से साभार)

रचना - श्रीमती सपना निगम 

यही धर्म है मोक्ष पथगामी
मध्यम मार्ग सरल
पाँच अनुशीलन हैं इसके
मानव पालन कर.


सत्कर्मों की पूँजी बना ले

प्रेम-भाव अविरल
कर्मों को अपना धर्म समझ ले
करना किसी से न छल.


प्राणीमात्र पर दया करना तू

जो  हैं दीन-निर्बल
बुद्ध ने जो सन्देश दिया है
उस पर करना अमल.


राग-रंग नहीं करना तुझको

संयम है तेरा बल
मानव जीवन तुझे मिला है
रखना इसे निर्मल.


त्रिपिटक ग्रंथों में समाये

जीवन सार सकल

प्रज्ञा शील करुणा अपना ले
मोक्ष की कामना कर.


स्वर्ग-नर्क सब किसने देखा ?

किसने देखा कल ?
परम-धाम जाना है तुझको
बुद्ध की राह पर चल.

बुद्धं शरणम गच्छामि

धम्मं शरणम गच्छामि
संघम  शरणम गच्छामि
पंचशील के अनुगामी.


बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनायें

-श्रीमती सपना निगम
 आदित्य नगर,दुर्ग
 (छत्तीसगढ़)

Thursday, May 3, 2012

भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष पूरे


इस अवसर पर एक विशेष  प्रस्तुति
 
अपने     पसंदीदा      कई     संगीत कार     है
नौशाद ,  दान सिंह,   रवि,    हेमंत कुमार   हैं.

खैय्याम ,ओ पी नैय्यर, शंकर औ जयकिशन
सी.  राम  चंद   पे   हजारों    जाँ  -  निसार  हैं.

कल्याण  जी   आनंद  जी ,  जयदेव,  चित्रगुप्त
हुस्न लाल  भगत राम  के   भी  तलबगार  हैं.

बुलो सी . रानी, सचिन दा ,  एस.एन.त्रिपाठी
इनकी  धुनें  तो  अब  तलक  सर पे  सवार हैं.

बसंत देसाई, ऊषा खन्ना,  लक्ष्मी और प्यारे
ये  भी  तो  वीणापाणि  की  वीणा  के  तार  हैं.

ठेके  वो  दत्ताराम  के , पंचम  की  शोखियाँ
गुलाम  मोहम्मद  की    धुनें  खुशगवार   हैं.

रविशंकर ,  मदन मोहन की  बात निराली
सलिल चौधरी  ने छेड़े, जवाँ दिल के तार हैं.
 
नाशाद,सोनिक ओमी, सी. अर्जुन, शिव-हरि
खेम चंद प्रकाश’,रोशन, यहाँ सदाबहार हैं.

[ओबीओ के तरही मुशायरा में शामिल मेरी गज़ल : कुछ परिवर्तन के साथ]

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अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर ,जबलपुर (म.प्र.)

Tuesday, May 1, 2012

मजदूर दिवस पर विशेष


धूप में   वह  झुलसता ,  माथे पसीना बह रहा
विषमतायें , विवशतायें , है  युगों से  सह रहा.

सृजन करता  आ रहा है , वह  सभी के वास्ते
चीर  कर  चट्टान  को , उसने   बनाये   रास्ते.

खेत,खलिहानों में उसकी मुस्कुराहट झूमती
उसके दम ऊँची इमारत , है गगन को चूमती.

सेतु , नहरें , बाँध उसके श्रम से ही साकार हैं
देश  की  सम्पन्नता का ,बस वही आधार है.

चिर युगों से देखता  आया जमाने का चलन
कागजों के आँकड़े  ,  आँकड़ों का आकलन.

अल्प में  संतुष्ट रहता , बस्तियों  में  मस्त है
मत दिखा झूठे सपन वह हो चुका अभ्यस्त है.

तू उसे देने चला, दु:ख सहके जो सुख बाँटता
वह तेरी  राहों के   काँटे ,  है  जतन से छाँटता.

लग  जा गले   तू आज ,झूठी वर्जनायें तोड़ कर
वह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर.

वह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर
वह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर.

एक नजर इधर भी : सियानी गोठ   http://mitanigoth2.blogspot.com


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)