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Thursday, April 26, 2012

आशा के दो रूप


एक रूप ऐसा.............
आशा की ये डोर , भोर लाई चहुँ ओर
है सुखों से सराबोर, छोर कहीं न दिखाई दे.

नाचे झूमे मन मोर, देख घटा घनघोर
मारे पवन हिलोर, शोर कहीं न सुनाई दे.

आशा बड़ी चितचोर, करे भाव में विभोर
मस्ती छाई पोर-पोर, चोर कहीं न दिखाई दे.

कभी आए करजोर, कभी बैंय्या दे मरोर
कभी देती झकझोर, जोर कहीं न दिखाई दे
.

एक रूप ऐसा भी-------

आशा बने जो निराशा, मिले केवल हताशा
बने जिंदगी तमाशा, राह कहीं न दिखाई दे.

आए निराशा का दौर, आत्मबल हो कमजोर
जाएँ भला किस ओर, कोई ठौर न सुझाई दे.

जब निराशा छा जाती, दर-दर भटकाती
रात दिन है सताती, कष्ट बड़े दु:खदाई दे.

संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
आत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

(ओबीओ महा उत्सव में शामिल रचना)

12 comments:

  1. संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
    आत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे... और यही ज़िन्दगी बनाती है

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  2. संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
    आत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे......बहुत सुन्दर....

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  3. वाह...........

    बहुत सुंदर...
    आशा के दोनों रूप कभी ना कभी जीवन में दिखाई देते ही हैं.....

    सादर.

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  4. बेहतरीन भाव संयोजित किए हुए ..उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  5. .
    .
    .

    रोचक सुंदर कविता ।

    धन्यवाद!

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  6. संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
    आत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे.

    वाह!!!!बहुत सुंदर भावअभिव्यक्ति,...बेहतरीन रचना,...

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

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  7. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...!

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  8. आपको पढ़कर एक अलग ही रचना संसार में भ्रमण कर आती हूँ..अति सुन्दर...

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  9. आशा के दौनों ही रूप बहुत अच्छे लगे |उंदा प्रस्तुति |
    आशा

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  10. निगम साहब
    अच्छी रचना को प्रस्तुत करने का आभार..... ! आगे भी प्रतीक्षा रहेगी !

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  11. bdhai itani achhi post ke liye .

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  12. संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
    आत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे.

    आशा है तो श्वासा है।
    प्रेरणा देती हुई बढि़या रचना।

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