जीवन
के खामोश सफर में, मुझको नींद नहीं आती है
मखमल
रेशम के बिस्तर में, मुझको नींद नहीं आती है.
जीना
सीख लिया तब जाना
कितना
है बेदर्द जमाना
कोई
न जाने साथ निभाना
व्यर्थ
किसी को हृदय बसाना.
रातों
को अब किसी प्रहर में, मुझको नींद नहीं आती है
जीवन
के खामोश सफर में,मुझको नींद नहीं आती है.
सोचा
था , है सफर सुहाना
झूम
रहा था मन मस्ताना
ज्योंहि
लेकिन हुआ रवाना
बाँह
पसारे था वीराना.
प्रेम
नगर के इस खंडहर में,मुझको नींद नहीं आती है
जीवन
के खामोश सफर में,मुझको नींद नहीं आती है.
एक नजर इधर भी सियानी गोठ http://mitanigoth2.blogspot.com
एक नजर इधर भी सियानी गोठ http://mitanigoth2.blogspot.com
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय
नगर, जबलपुर (म.प्र.)
रातों को अब किसी प्रहर में, मुझको नींद नहीं आती है
ReplyDeleteजीवन के खामोश सफर में,मुझको नींद नहीं आती है...बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
अभिव्यक्ति.......
bahut sundar bhavabhivyakti.
ReplyDeleteBahut sundar Arun ji..
ReplyDeleteवाह....वाह...
ReplyDeleteसोचा था , है सफर सुहाना
झूम रहा था मन मस्ताना
ज्योंहि लेकिन हुआ रवाना
बाँह पसारे था वीराना.
प्रेम नगर के इस खंडहर में,मुझको नींद नहीं आती है
बहुत ही खूबसूरत ......
अनु
जीना सीख लिया तब जाना
ReplyDeleteकितना है बेदर्द जमाना
कोई न जाने साथ निभाना
व्यर्थ किसी को हृदय बसाना.
....बेहतरीन प्रस्तुति...भावों और शब्दों का अदभुत प्रवाह...
रातों को अब किसी प्रहर में, मुझको नींद नहीं आती है
ReplyDeleteजीवन के खामोश सफर में,मुझको नींद नहीं आती है... तो खुली आँखों के सपने भी ठहरते नहीं
वाह बहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
ReplyDeleteवादा किया था कि ख्वाबों में आएंगे
ReplyDeleteअब नींद नहीं आती तो ख्वाब कहाँ से आएंगे ...
बहुत नाइंसाफी है .... कोमल भावनाओं को लिए सुंदर प्रस्तुति
नींद उड़ाने वाले सुन ले, हो जाये बदनाम कहीं ना ।
ReplyDeleteपिंड छुडाने वाले सुन ले, होवे काम तमाम कहीं ना ।
तूने वीरानापन छोड़ा, क्या भूल गई कसमे-वादे
वापस आ जा संग सुला जा, मिलता है आराम नहीं ना ।।
सोचा था , है सफर सुहाना
ReplyDeleteझूम रहा था मन मस्ताना
ज्योंहि लेकिन हुआ रवाना
बाँह पसारे था वीराना.
WAH NIGAM SAHAB .....BEHAD GAMBHIR RACHANA ....BADHAI KE SATH ABHAR BHI.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteलिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
जीना सीख लिया तब जाना
ReplyDeleteकितना है बेदर्द जमाना
कोई न जाने साथ निभाना
व्यर्थ किसी को हृदय बसाना.
Gahari Abhiykti....
प्रेम नगर के इस खंडहर में,मुझको नींद नहीं आती है
ReplyDeleteजीवन के खामोश सफर में,मुझको नींद नहीं आती है.
कोमल भावनाओं लिए सुंदर प्रस्तुति.
जिंदगी के अंधेरे कोने पर स्नेहिल दृष्टि डालता सुंदर गीत।
ReplyDeleteजीवन के खामोश सफर में मुझको नींद नहीं आती है ,
ReplyDeleteबे -चैनी हर पल तडपाती ,भरमाती है ,
अपनों को अब लाज नहीं आती है ......
बढ़िया गीतात्मक रचना .गेयता से भर पूर लोरी सा नाद लिए .
अरुण जी, भावपूर्ण कविता... बहुत सुन्दर
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