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Wednesday, April 18, 2012

“ सपन संजोते देखा ”



इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
कारण सबका एक – सपन संजोते देखा.

बासंती  यौवन  क्यों   पतझर-राग सुनाता
सावन  का  मौसम    अंतस में  आग जलाता
दीप   ढूँढता  है    -     कोई   अंधियारा   कोना
भ्रमर , कलि के आँचल पर क्यों  दाग लगाता

ऊषा  के  आंगन  -  सूरज को सोते देखा
इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
कारण सबका एक – सपन संजोते देखा.

बुनकर सपने, “ हृदय – जुलाहा”  पीड़ा सहता
मरुथल - सी  सूखी  आँखों  से  झरना  बहता
समझाता  संतोष      देखो सपन गगन के
“ मेरी अभिलाषा अनंत “ –  यह मन है कहता

कुछ पाने की आस में सबकुछ खोते देखा
इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
कारण सबका एक – सपन संजोते देखा.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

(ओबीओ महोत्सव में शामिल रचना)

22 comments:

  1. कुछ पाने की आस में सबकुछ खोते देखा
    इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
    कारण सबका एक – सपन संजोते देखा...

    Beautiful creation !

    .

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  2. समझाता संतोष – न देखो सपन गगन के
    “ मेरी अभिलाषा अनंत “ – यह मन है कहता

    बहुत सुंदर ....

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  3. सपना अपना चुन लिया, करे नहीं पर यत्न ।

    बिन प्रयत्न कैसे मिले, कोई अद्भुत रत्न ।

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  4. वाह..........

    ऊषा के आंगन - सूरज को सोते देखा
    इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
    कारण सबका एक – सपन संजोते देखा

    बहुत सुंदर!!!!!

    अनु

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  5. ऊषा के आंगन - सूरज को सोते देखा
    इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
    कारण सबका एक – सपन संजोते देखा... बिल्कुल सच

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  6. ऊषा के आंगन - सूरज को सोते देखा
    इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा

    वाह !!!! बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना लगी,...निगम जी

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

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  7. इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
    कारण सबका एक – सपन संजोते देखा.

    बहुत अच्छी प्रस्तुति!!

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  8. बुनकर सपने, “ हृदय – जुलाहा” पीड़ा सहता
    मरुथल - सी सूखी आँखों से झरना बहता
    समझाता संतोष – न देखो सपन गगन के
    “ मेरी अभिलाषा अनंत “ – यह मन है कहता

    Bahut Hi Sunder

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  9. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19 -04-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ये पगडंडियों का ज़माना है .

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  10. क्या बात है! मर्मस्पर्शी सृजन , शुभकामनयें जी /

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  11. बहुत ही बढ़िया सर!


    सादर

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  12. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  13. सच्चाई से रु-ब-रु कराती सुंदर रचना !
    बधाई!

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  14. आपकी पोस्ट कल 19/4/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा - 854:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  15. ऊषा के आंगन - सूरज को सोते देखा
    इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
    कारण सबका एक – सपन संजोते देखा.
    very nice...

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  16. कुछ पाने की आस में सबकुछ खोते देखा
    इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
    कारण सबका एक – सपन संजोते देखा.
    ...सच कहा आपने ..दुनिया में दुःख का सबसे बड़ा कारन है "अपेक्षाएं" ...जिस दिन हम अपेक्षा करना या रखना छोड़ देंगे ...हमारे आधे दुःख दूर हो जायेंगे...बहुत ही सुन्दर सारगर्भित रचना

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  17. शुक्रवारीय चर्चा-मंच पर

    आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

    charchamanch.blogspot.com

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  18. बहुत बहुत सुन्दर गीत के लिए आपको ढेरों बधाइयाँ ...सब्दों का चयन और समायोज
    कमाल का है और भाव ? सत्य का सास्वत स्वरूप है

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  19. कुछ पाने की आस में सबकुछ खोते देखा
    इस जग में जिसको भी देखा - रोते देखा
    कारण सबका एक – सपन संजोते देखा.
    ..gar sapne hi to hai insaan ko jinda rakhne ke liye..
    ab kitne sapne kiske poore hue yah kismat kee baat hai..
    bahut sundar sarthak rachna!

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  20. dubara padh rahi hoon is rachna ko utna hi maja aaya aaj bhi padh ke.

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