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Sunday, April 29, 2012

जीवन हमारा यारों अभिनय हो गया


 
आजकल   ये  हमको संशय हो गया
कैंसर नहीं तो शायद ,  क्षय हो गया.

फूलों से चोट हाये !  जब से लगी हमें
काँटों की राह चलना ही तय हो गया.

जब से बताया उनको , हैरान से खड़े
कि वेदना और मुझमें  प्रणय हो गया.

अपने सभी यहाँ पे खाने को आमादा
यूँ  लग  रहा  है  मानो  प्रलय हो गया.

पशुओं में  ढूँढता हूँ  मैं इन दिनों दया
ये आदमी भी कितना निर्दय हो गया.

खुशियाँ  मनाइयेगा,अब धूमधाम से
पीड़ा से आज अपना परिणय हो गया.

हँसना ही पड़ रहा है ,  बात - बात पर
जीवन हमारा यारों अभिनय हो गया.

एक नजर इधर भी : सियानी गोठ   http://mitanigoth2.blogspot.com

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Thursday, April 26, 2012

आशा के दो रूप


एक रूप ऐसा.............
आशा की ये डोर , भोर लाई चहुँ ओर
है सुखों से सराबोर, छोर कहीं न दिखाई दे.

नाचे झूमे मन मोर, देख घटा घनघोर
मारे पवन हिलोर, शोर कहीं न सुनाई दे.

आशा बड़ी चितचोर, करे भाव में विभोर
मस्ती छाई पोर-पोर, चोर कहीं न दिखाई दे.

कभी आए करजोर, कभी बैंय्या दे मरोर
कभी देती झकझोर, जोर कहीं न दिखाई दे
.

एक रूप ऐसा भी-------

आशा बने जो निराशा, मिले केवल हताशा
बने जिंदगी तमाशा, राह कहीं न दिखाई दे.

आए निराशा का दौर, आत्मबल हो कमजोर
जाएँ भला किस ओर, कोई ठौर न सुझाई दे.

जब निराशा छा जाती, दर-दर भटकाती
रात दिन है सताती, कष्ट बड़े दु:खदाई दे.

संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
आत्मशक्ति को झंझोड़ो, यही फल सुखदाई दे.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

(ओबीओ महा उत्सव में शामिल रचना)

Monday, April 23, 2012

सुर्ख लबों पर कड़वी बातें


सुर्ख   लबों   पर कड़वी   बातें
फबती नहीं,  प्रिये   ना बोलो
या  तो  रंग  लबों  का  बदलो
या   फिर  थोड़ा  मीठा   बोलो ......................................

तुमसे   भी   बेहतर  चेहरे   हैं
उन   पर  भी  यौवन  ठहरे हैं
नाक नक्श हैं  तीखे – तीखे
आँखों   में   सागर   गहरे   हैं

सच  कहने   से कब  रोका है
सच्चा  बोलो    मधु-सा  बोलो
सुर्ख   लबों   पर कड़वी   बातें
फबती  नहीं,  प्रिये    ना बोलो.......................................

यह    सुंदरता    आवा - जाही
सूरज  –  चंदा   बने   गवाही 
यौवन -संझा  ढलती है नित
रजनी आती   लिये   सियाही

जीवन  की  नश्वरता   समझो
जब  भी  बोलो  , अच्छा   बोलो
सुर्ख   लबों   पर कड़वी   बातें
फबती  नहीं,  प्रिये    ना बोलो........................................


एक नजर इधर भी सियानी गोठ   http://mitanigoth2.blogspot.com

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)