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Monday, March 26, 2012

पहले - सी अब नजर न आती गौरैया.


चूँ - चूँ करती , धूल  नहाती     गौरैया.
बच्चे , बूढ़े  , सबको  भाती     गौरैया .
 
कभी द्वार से
,कभी झरोखे,खिड़की से
फुर - फुर करती , आती जाती गौरैया .
 
बीन
-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
उस   कोने   में  नीड़   बनाती   गौरैया.
 
शीशे
  से  जब  कभी  सामना होता तो,
खुद  अपने   से  चोंच  लड़ाती   गौरैया.
 
बिही
   की शाखा से  झूलती लुटिया से
पानी  पीकर  प्यास   बुझाती   गौरैया.

साथ समय के बिही का भी पेड़ कटा  
सुख वाले दिन बीते
,     गाती गौरैया.
 
दृश्य
  सभी ये ,बचपन की स्मृतियाँ हैं
पहले - सी अब  नजर न आती गौरैया.
 
(पुनर्प्रस्तुति)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
 

Saturday, March 24, 2012

) हास्य गज़ल (


(ओबीओ तरही मुशायरा में शामिल)
 
उमर ढली पर अभी भी दिखते  शवाब में
ये काली जुल्फें रँगी हैं जब से खिजाब में.

कवाब, हड्डी, कलेजी, कीमा हर एक दिन
उन्हें  यकीं  है  बड़ा ही यारों  जुलाब में.

मिली वसीयत में  भारी दौलत नसीब से
समय बिताने पकड़ते मछली  तालाब में.

व्ही.आर. लेने की सोचता हूँ मैं इन दिनों
मजा नहीं रह गया जरा भी है  जॉब में.

सलाम ठोकूँ क्यों डाकिये को बिना वजह
"मैं  जानता हूँ जो वो लिखेंगे  जवाब में"

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Wednesday, March 21, 2012

दिल जोड़ना ही सीखा.............


(ओबीओ तरही मुशायरा में शामिल गज़ल)

इक रोज रख गये थे वो दिल की किताब में
ताउम्र  बरकरार  है  खुशबू  गुलाब  में.

कच्ची उमर की हर अदा ओ चाल नशीली
वो मस्तियाँ ना मिल सकीं कच्ची शराब में.

दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
मैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में.

आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में

कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.

हुश्नोशवाब पर तो गज़ल  खूब लिखी हैं
रोटी ही नजर आती है अब माहताब में .

दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.

पहले से खत जवाबी लिखके भेज दे अरुण
"मैं  जानता हूँ जो वो लिखेंगे  जवाब में"

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Saturday, March 17, 2012

कल किये थे हाथ पीले .......


(ओबीओ महाउत्सव में शामिल रचना)

जुड़ गया बिटिया का रिश्ता, दिन सजीले हो गये
नयन  कन्या दान करते ,  क्यों पनीले हो गये.

चहचहाती  चपल  चिड़िया , चंचला चुपचाप  है
यूँ बजी शहनाई  मन में ,  सुर  सुरीले हो गये.

नाज से पाला था जिसको , वो  पराई  हो  रही
माँ – पिता , परिवार के  सपने रंगीले  हो गये.

हैं  नहीं  आसान  राहें, आज  के  परिवेश  में
अब सजन - ससुराल के भी पथ कँटीले हो गये.

देख कर बेटी की हालत ,  नयन  गीले हो गये
कल किये थे हाथ पीले ,  आज  नीले  हो गये.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Wednesday, March 14, 2012

एक अंतरंग मुलाकात श्री संजय मिश्र हबीब जी से.....


दस मार्च दिन शनिवार, ग्यारह बजे करीब
मोबाइल के कॉल पर  संजय मिश्र  हबीब.
बोले - “ भैया आपसे , है मिलने की आस
पहुँच गया हूँ दुर्ग में, ओव्हरब्रिज के पास.
लोकेशन बतलाइये ,  अपने घर की आप
ताकि पहुँचूँ शीघ्र मैं , जल्दी होय मिलाप.
संजय जी की बात सुन, आतुर हो गये नैन
मधुर मिलन की चाह में, हृदय-प्राण बैचैन.
लोकेशन बतलाई यूँ , ओव्हरब्रिज करें पार
दायें बाजू जल कलश , लीजे आप निहार.   
मुड़कर सीधे हाथ फिर चलना करें आरम्भ
बीचोंबीच इस मार्ग पर, है विद्युत स्तम्भ.
यहीं प्रतीक्षारत  खड़ा , मिल जाऊंगा भ्रात
संजय जी पहुँचे वहाँ, कुछ पल के उपरांत.
दूरभाष पर बातचीत  , चेहरे से अनजान
इक दूजे को किंतु हम, तुरत गये पहचान.
संजय जी के साथ मैं, ज्योंहि पहुँचा द्वार
सपना , बिट्टू ने किया , मुस्काकर सत्कार.
फिर आपस में बैठकर जी भर के की बात
कैसे और कब से की,ब्लॉगिंग की शुरुवात.
ओबीओ  के  आयोजन ,  चर्चा मंच के रंग
किस ब्लॉगर से मेलजोल चैटिंग किसके संग.
कुछ चर्चा साहित्य पर,कुछ पारिवारिक बात
कुछ चर्चायें ब्लॉग पर , कुछ अपने हालात.
कार्य क्षेत्र , गतिविधियाँ , रोचक कई प्रसंग
छत्तीसगढ़ की संस्कृति , कविमित्र, सत्संग.
अच्छे रचनाकार कुछ, गीत गज़ल और छंद
दो घंटों के मिलन  में,  सदियों का आनंद.
ब्लॉग जगत में क्या नहीं नेह प्रेम सम्मान
रिश्तों में मीठास   और  चिट्ठों में है ज्ञान.
निर्मल निश्छल नेह की  बंधी रहे यह डोर
प्रेम , प्यार , सद्भाव  यूँ  फैले चारों ओर.
मृदुभाषी विनम्र अति मोहक मुख मृदुहास
सेवा कुछ करने न दी, कहा –आज उपवास.
धनी प्रखर व्यक्तित्व के, संजय मिश्र हबीब
मुझसे मिलने आ गये ,  मेरे धन्य  नसीब.
( माँ का स्वास्थ्य खराब होने के कारण 25 फरवरी से अवकाश पर दुर्ग में रहा. व्यस्तता व नेट अनुपलब्धता के कारण ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा. इसी दौरान रायपुर से श्री संजय मिश्र हबीब आदित्य नगर दुर्ग आये. इसी अंतरंग मुलाकात को पद्य रूप में आप सभी के साथ शेयर करने का प्रयास किया है.)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)