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Saturday, February 25, 2012

होम करते हाथ ................

देखने में रस की जो  छागल लगे
इस तरह के शख्स तो घायल लगे .

घुंघरुओं में थी मधु झंकार पर
बेबसी के पाँव की पायल लगे.

होम करते हाथ जिनके जल गये
वो जमाने को निरे पागल लगे.

दाग दामन का समझते हैं जिन्हें
वो छलकती आँख का काजल लगे.

बिजलियाँ सीने में जिनके कैद हैं
सुख लुटाते , सावनी बादल लगे.

छाँव जिनके सर रही, अंजान हैं
धूप में वो प्यार का आँचल लगे.

पी रहा जो जिंदगी भर विष अरुण
रंग उसके तन का अब श्यामल लगे.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Thursday, February 23, 2012

रविकर जी का जबलपुर आगमन........


आज चले आये हो जैसे
वैसे ही तुम आते रहना
कभी देखना नजर मिला के
नजरें कभी झुकाते रहना.

मिलते जुलते रहने से ही
दिल की बातें हो जाती हैं
कभी हमारी सुन लेना तो
अपनी कभी सुनाते रहना.

सिर्फ तुम्हारा आ जाना ही
वीराने महका देता है
आते जाते वीरानों में
साथी फूल खिलाते रहना.

बिन नाते के इतना अच्छा
कैसे कोई लग सकता है
किसी जनम का रिश्ता होगा
यूँ ही इसे निभाते रहना.

(प्रेम गीत में भावों की आत्मीयता “तुम” से ही भली लगती है, आदरणीय अपने संदर्भ में इसे आप समझें

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)


Wednesday, February 22, 2012

रविकर आये द्वार....................


19 फरवरी 2012 दिन रविवार सुबह - सुबह पौने नौ बजे मोबाइल बज उठा, उधर से आवाज आई.......निगम जी जबलपुर के रेल्वे स्टेशन से मैं रविकर(दिनेश चंद्र गुप्ता) बोल रहा हूँ. छिंदवाड़ा से लौट रहा हूँ, इलाहाबाद जाना है. डेढ़ बजे ट्रेन है, चार घंटे का टाइम है. सोच रहा हूँ आपसे मुलाकात करता चलूँ. स्टेशन से कितनी दूर है आपका घर ? मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा. मैंने कहा –आप वहीं रुकिये मैं आपको लेने आ रहा हूँ.मेरा घर स्टेशन से यही कोई आठ किलोमीटर दूर है. रविकर जी ने कहा आप बस आने का साधन बताइये. कहाँ आना है. आपके स्टेशन आते तक तो मैं ही वहाँ पहुँच जाऊंगा. मैंने बताया कि मेट्रो बस से अहिंसा चौक आ जाइये. 
कुछ देर बाद रविकर जी का कॉल आया- मैं अहिंसा चौक पहुँच गया हूँ. मैं तैयार होकर प्रतीक्षा कर ही रहा था. स्कूटर से अहिंसा चौक पहुँच गया. बगल में बड़ा सा बैग लटकाये सज्जन को देखते ही पहचान गया कि यही रविकर जी हैं. मैंने उनसे स्कूटर  पर बैठने का आग्रह किया तो वे बोले- श्रीमती जी भी साथ हैं. रोड के किनारे भाभी जी भी खड़ी थीं. तुरंत रिक्शा कर दोनों को मैं अपने घर लेकर आ गया. मन खुशी से फूला नहीं समा रहा था. पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. रविकर जी से प्रत्यक्षत: यह पहली मुलाकात थी.वैसे भी दुर्ग और जबलपुर के बाहर के किसी भी ब्लॉगर से मुलाकात करने का यह पहला अवसर था. जबलपुर में मैं अकेला ही रहता हूँ. परिवार के शेष सदस्य दुर्ग छत्तीसगढ़ में रहते हैं. शेष सदस्य भी क्या कहूँ श्रीमती जी और छोटा बेटा दुर्ग में हैं. बड़ा बेटा-बहू बनारस में और मंझला बेटा-बहू रायपुर में हैं.
आगत के स्वागत में चाय बनाने किचन की ओर जैसे ही बढ़ा रविकर जी ने कहा- निगम जी ! औपचारिकताओं में वक़्त जाया न कीजिये थोड़ा सा समय है, आइये बैठकर बातें करते हैं. किंतु चाय तो बननी ही थी . हरे चने के दानों को तल कर हल्का-फुल्का नाश्ता पहले से ही तैयार कर रखा था. इसी दौरान गाफिल जी का कॉल रविकर जी को आया शायद चर्चा मंच के बारे में कुछ कह रहे थे....अधूरा तैयार है....पूरा कर लेंगे.....बातें तो मैंने सुनी नहीं रविकर जी की बातें सुन कर अनुमान ही लगा पाया. रविकर जी ने मेरे लैपटॉप पर प्रयास भी किया मगर मेरे लैपटॉप पर उन्हें कुछ असुविधा सी हो रही थी सो गाफिल जी के आग्रह को पूरा नहीं कर सके. पहले तो उन्होंने मेरे परिवार के सदस्यों के बारे में पूछा फिर अपने परिवार के बारे में बताया.उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें भी धनबाद में मेरी ही तरह अकेले जीवन-यापन करना पड़ रहा है.
 रविकर जी की ट्रेन दोपहर 1.30 बजे थी. टिकट तो उन्होंने नेट से पहले ही निकाल रखी थी. इंक्वारी करने से पता चला कि 45-46 की वेटिंग चल रही है. चार्ट तैयार नहीं हुआ था. मेरे स्टॉफ सदस्य श्री एल.पी.राव जो मेरे ही अपार्ट्मेंट में रहते हैं, को बुला कर मैंने निवेदन किया कि दो घंटे बाद ट्रेन है ,अभी चार्ट तैयार नहीं हुआ है, सम्भावना तो नगण्य है फिर भी प्रयास करके देखने में हर्जा क्या है. राव साहब प्रयास करने चले गये. इसके बाद लगभग बारह बजे तक रविकर जी के साथ दिल खोल कर ब्लॉग, कविता, दोहे और छंदों पर चर्चा हुई. इसी दौरान हमने साथ-साथ दोपहर का भोजन भी कर लिया. सवा बारह बजे स्टेशन के लिये निकलना था. नेट में फिर से इनक्वारी की दोनों ही टिकटें कंफर्म हो गई थी.तुरंत राव साहब को हमने धन्यवाद दिया .दूसरी खुशी की बात मेरे लिये यह थी कि ट्रेन साढ़े छ:घंटे लेट थी. रविकर जी का सानिध्य कुछ देर के लिये और प्राप्त होना मेरे नसीब में था. अब तो हम टिकट से भी निश्चिंत थे और ट्रेन के समय से भी. 
फिर से बातों का दौर शुरु हुआ. समीर लाल जी की कविताओं का संग्रह “बिखरे मोती” जो समीर जी ने अपने जबलपुर प्रवास के दौरान मुझे भेंट की थी को भी रविकर जी ने देखा. कवि स्व.विनयकुमार भारती की कविताओं के संग्रह की बहुत ही पुरानी एक किताब देखकर भी वे बहुत खुश हुये. रविकरजी को मैंने अपने छत्तीसगढ़ अंचल के कवि ,गायक और गीतकार श्री लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत भी लैपटॉप पर सुनाये. भाभी जी भी इस साहित्यिक व संगीतमय चर्चा में शामिल रहीं.
देखते ही देखते साढ़े छ: बज गये. ट्रेन का समय हो रहा था. एल.पी.राव जी भी आ गये. मेरे निवास से नजदीक ही कचनार सिटी में शिवजी की लगभग 76 फीट ऊँची बेमिसाल प्रतिमा है. स्टेशन जाने के पूर्व हम शिव-दर्शन को गये. महा शिवरात्रि की पूर्व संध्या होने के कारण सजाया गया यह स्थान और भी मोहक लग रहा था. हमने शिवजी की भव्य प्रतिमा के दर्शन किये और रेल्वे स्टेशन के लिये रवाना हो गये. रविकर जी और भाभी जी को मैं और राव साहब स्टेशन तक छोड़ कर लौट आये.रविकर जी की सहृदयता, सादगी और साहित्यिक ज्ञान से मैं अभिभूत हो गया.यह मुलाकात मुझे जीवन भर नई उर्जा देती रहेगी.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Wednesday, February 15, 2012

तुम पास नहीं होती.....


तुम पास नहीं होती मेरे, प्रकृति सताने आती है
आस लिये नयनों में अपने, प्यार जताने आती है.................

ऊषा कहती लाली देखो, सुमन कहे रसपान करो
मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ,मुझको न परेशान करो
दूर देश से भाग पवन, मुझको लिपटाने आती है..................

मुस्काती कलियों ने मुझको, अश्रु बहाते देखा है
तुमसे रह कर दूर मुझे, किसने मुस्काते देखा है
दूर्बादल पर पतित अश्रु , रश्मि उठाने आती है.......................

बिरहा में राख न हो जाऊँ,प्रियतम अब तो तुम आ जाओ
कहीं धूल न बन जाऊँ तुम बिन, आकर अब नयन मिला जाओ
नित मृत्यु-सुंदरी मीठी सी, नींद सुलाने आती है...............

(रचना वर्ष-1976)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)