Followers

Tuesday, January 24, 2012

रिश्तों का स्वामित्व खो गया....


सुविधाओं की भाग-दौड़ में
सुख का है अस्तित्व खो गया     
देह सिर्फ रह गई व्यक्ति की
पूरा ही व्यक्तित्व खो गया.

धन-दौलत , ओहदे की चाहत
प्रीति नीति इस युग में आहत
वैभव की छीन-झपटी में
रिश्तों का स्वामित्व खो गया.

आया, झूलाघर की सुलभता
एकल परिवारों की विवशता
बड़े – बुजुर्गों से दूरी में
पहले-सा अपनत्व खो गया.

आज के संग में कानाफूसी
कल था कितना दकियानूसी
अधिकारों के राजपाट में
देखो अब दायित्व खो गया.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )

19 comments:

  1. आज की दौड़ में न रिश्ते रहे , न सोच .... पैसे की चाह , पैसे से सबकुछ खरीद लेने के दंभ में इन्सान कुछ नहीं रहा - न जीवित , न मृत . क्या स्वामित्व , क्या सुरक्षा - कोई वजूद नहीं रहा

    ReplyDelete
  2. आज के यथार्थ में रिस्तो की बेहतरीन और सार्थक अभिवयक्ति.....

    ReplyDelete
  3. धन-दौलत , ओहदे की चाहत
    प्रीति नीति इस युग में आहत
    वैभव की छीन-झपटी में
    रिश्तों का स्वामित्व खो गया....

    सच कहा है अरुण जी ... रिश्ते भी आज दौलत के चश्में से ही देखे जाते हैं ... लाजवाब लिखा है ..

    ReplyDelete
  4. सच्चाई का दर्शन कराती शानदार अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने |
      सटीक |
      बधाई ||

      Delete
  5. आया, झूलाघर की सुलभता
    एकल परिवारों की विवशता
    बड़े – बुजुर्गों से दूरी में
    पहले-सा अपनत्व खो गया.

    बहुत खूबसूरती से उभरा है आज की इस त्रासदी को

    ReplyDelete
  6. सही कहा आपने .. आज -कल व्यक्ति का व्यक्तित्व खो गया ,रिश्तों का स्वामित्व खो गया

    ReplyDelete
  7. यथार्थ को खूबसूरती से ढाल दिया आदरणीय अरुण भईया शब्दों में...
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  8. देह सिर्फ रह गई व्यक्ति की
    पूरा ही व्यक्तित्व खो गया.

    यथार्थ कहा अरुण जी

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  10. जीवन के एक कटु सत्य को खूबसूरती से सामने लाती है ये पोस्ट

    ReplyDelete
  11. क्या बात जी ! आईने को सामने रख दिया है ,बधाईयाँ जी /

    ReplyDelete
  12. सच्चाई से सराबोर रचना...

    ReplyDelete
  13. आया, झूलाघर की सुलभता
    एकल परिवारों की विवशता
    बड़े – बुजुर्गों से दूरी में
    पहले-सा अपनत्व खो गया.
    हर बंद खूबसूरत है धारदार यथार्थ लिए है .जीवन की बॉस लिए है जंक फ़ूड सी .

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुविधाओं की भाग-दौड़ में
      सुख का है अस्तित्व खो गया
      देह सिर्फ रह गई व्यक्ति की
      पूरा ही व्यक्तित्व खो गया.सही कहा आपने.

      Delete
  14. जीवन के यथार्थ को शब्द देकर आपने बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है।...

    ReplyDelete
  15. बड़े – बुजुर्गों से दूरी में
    पहले-सा अपनत्व खो गया.सही कहा है आज के आधुनिकता परिवेश में प्रवेश करता बनावटी पन ने रिश्तों नातों को खो दिया है|अभिव्यक्ति है या आक्रोश|वास्तविकता है कविता में. बहुत बढिया

    ReplyDelete
  16. बहुत ही बढ़िया सर!



    सादर

    ReplyDelete