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Sunday, January 29, 2012

पतझर जैसा मधुमास


प्राची से  चली प्रतीची तक
प्रणय तृषित व्याकुल वसुधा
कब क्षितिज मिलन का द्वार हुआ
आकाश-मिलन बस एक क्षुधा.

तारावलियाँ चंचल किरणें
बारात सजी आभास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.

वह सुधा-कलश सी चंद्रकला
सौतन जीवन की क्षणिकायें
वसुधा का रुदन, तृण का आँचल
उस पर बिखरी जल कणिकायें

नक्षत्रों से पलकें झपकीं
विस्मृत सारा उल्लास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
(रचना वर्ष-1974)

Thursday, January 26, 2012

जन गण मन के मधुर सुरों से.......


अरुणोदय की मंगल बेला
कलश लिये ऊषा का आना
कलरव के सरगम वंदन से
श्रम का सूरज पूजा जाना.

ओस कणों को दूर्बादल से
चुन चुन कर रश्मि ने बीना
कृषकों के तन से झर आये
हीरा, मोती और नगीना.

हर पग पर इतिहास रचा है
निखर रहा उन्नति का अर्चन
तन का होता नाश अरे !
बाधाओं का आत्म समर्पण.

जन गण मन के मधुर सुरों से
आओ मंगल गान करें
संस्कृति के आदर्शों से
नव युग का आव्हान करें.


कृपया एक क्लिक यहाँ भी-
श्रीमती सपना निगम (हिंदी ) http://mitanigoth2.blogspot.com


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Tuesday, January 24, 2012

रिश्तों का स्वामित्व खो गया....


सुविधाओं की भाग-दौड़ में
सुख का है अस्तित्व खो गया     
देह सिर्फ रह गई व्यक्ति की
पूरा ही व्यक्तित्व खो गया.

धन-दौलत , ओहदे की चाहत
प्रीति नीति इस युग में आहत
वैभव की छीन-झपटी में
रिश्तों का स्वामित्व खो गया.

आया, झूलाघर की सुलभता
एकल परिवारों की विवशता
बड़े – बुजुर्गों से दूरी में
पहले-सा अपनत्व खो गया.

आज के संग में कानाफूसी
कल था कितना दकियानूसी
अधिकारों के राजपाट में
देखो अब दायित्व खो गया.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )

Friday, January 20, 2012

उस पार ही तेरा खाता है....


ये गठरी संग न जायेगी, क्यों बोझ बढ़ाते जाता है
इस पार नहीं लेखा-जोखा, उस पार ही तेरा खाता है.

गठरी में जितना जोड़ेगा, नामे होगा उस खाते में
गठरी से जितना बाँटेगा, उतना पायेगा जाते में
दोहरी प्रविष्टि के लेखे को, क्यों यार ! समझ न पाता है.............

कितनी विशाल धरती तेरी, सागर तेरे ,ये वन तेरे
क्यों तेरी प्यास नहीं बुझती, आषाढ़ तेरे, सावन तेरे
तू प्यार लुटाकर देख जरा, कण-कण से तेरा नाता है....................

किस वृक्ष ने खाये खुद के फल, कब छत को देख के बरसा घन
कब भेद-भाव से पवन चली, कब धूप ने देखा धनी-निर्धन
तू देख कमा कर प्रेम-प्यार, क्या कागज के टुकड़े कमाता है................

अब आडम्बर को छोड़ जरा, अपने अंतस् मंदिर में जा
अब तेल, दिया-बाती तज कर, तू अंतर्मन का दीप जला
उस परम शक्ति से परिचय कर, तू ही तो भाग्य-विधाता है................

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)



Sunday, January 15, 2012

दोहे.....................


बड़ा सरल संसार है  , यहाँ नहीं कुछ गूढ़
है तलाश किसकी तुझे,तय करले मति मूढ़.  I 1 I


कहाँ  ढूँढता है  मुझे , मैं  हूँ  तेरे  पास
मैं तुझ सा साकार ना, मैं केवल अहसास.  I 2 I


पागल होकर खोजता ,  सुविधाओं में चैन
भौतिकता करती रही , कदम-कदम बेचैन.  I 3 I


मैं तुझे मिल जाऊंगा, तू बस मैं को भूल
मेरी खातिर हैं बहुत ,  श्रद्धा के दो फूल.  I 4 I


जीवन सारा बीत गया, करता रहा तलाश
अहंकार के भाव ने ,सबकुछ किया विनाश.  I 5 I


त्याग दिया माँ-बाप को, कितना किया हताश
अब किस सुख की चाह में, मुझको करे तलाश. I 6 I


जिस दिन जल कर दीप सा ,देगा ज्ञान प्रकाश
मुझमें तू मिल जायेगा, होगी खतम तलाश.  I 7 I


पाप भरें हैं हृदय घट , मन में रखी खराश
लेकर गठरी स्वर्ण की  ,  मेरी करे तलाश.  I 8 I


जीवित होकर हँस पड़ूँ , ऐसा संग तलाश
मूरत गढ़ने को यहाँ , लाना संग तराश.   I 9 I


जेठ दुपहरी क्यों खिलें ,सेमल और पलाश
कारण इसका भी कभी, अपने हृदय तलाश.  I 10 I

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (मध्य-प्रदेश)

Saturday, January 14, 2012

लगा कर देख ले नादां...........


ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
जिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से.

कहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
गुलाबों की महक आती है,  मेहनत के पसीने से.

कहीं उलझे हुए रिश्ते,  कहीं ज़ुल्फों में खम देखे
सुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से.

ये दौलत दरिया जादू का, पियो तो प्यास बढ़ती है
हमारी प्यास बुझती है  ,  पराये अश्क पीने से.

सभी कुछ पा लिया तूने, सुकूनेदिल नहीं पाया
लगा कर देख ले नादां कभी हमको भी सीने से.

(ओ.बी.ओ.तरही मुशायरा में शामिल)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग  (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)