Followers

Wednesday, August 31, 2011

ईद – मुबारक


आओ ईद मनायें.......

गले मिलें और प्यार करें
आओ ईद मनायें
अपना सब कुछ वार करें
आओ ईद मनायें.

और किसी दिन इतनी मीठी
लगती नहीं सेवैंय्या
बच्चे खुश हो नाच रहे हैं
ठुम्मक ता - ता थैया.

प्यार का हम इजहार करें
आओ ईद मनायें.............

नये नये कपड़ों में कितना
प्यारा लगता भैया
खुश हो अम्मी बोली बेटा
आ लूँ तेरी बलैय्या.

घर-आंगन गुलजार करें
आओ ईद मनायें.............

एक चमन के एक पेड़ के
हम हैं सोन चिरैया
धरती सोना, अम्बर सोना
हम डाले गलबैंय्या.

जग को इक परिवार करें
आओ ईद मनायें...............


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Tuesday, August 30, 2011

नगमे हुये उदास मेरे.....

अब तन्हाई का आलम ही,
दिल को आया रास मेरे
तुम जब मुझसे दूर गई हो,
मौत आ गई पास मेरे.

कैसा यह अपनापन आखिर,
चाह के भूल न पाता हूँ
सोचा गीत खुशी के लिख लूँ,
नगमे हुये उदास मेरे.

हवा बाँधने की कोशिश में,
बाँहें जब फैलाई थी
रेत-महल से चूर हो गये,
सब संचित विश्वास मेरे.

उड़ने की कोशिश की जब भी,
पंखों ने दम तोड़ दिया
उन कदमों की खाक बना मैं,
जितने भी थे खास मेरे.

अब ऐसी कुछ जतन करो कि
धड़कन को आराम मिले
माटी की चादर में बाँधो,
सुख मेरे – संत्रास मेरे.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)

{रचना वर्ष – 1978}

Saturday, August 27, 2011

जाने चले जाते हैं कहाँ.........भाग - 1


(पार्श्व गायक मुकेश की पुण्य तिथि पर......श्रीमती सपना निगम की कलम से)

      महान पार्श्व गायक मुकेश जी की  35 वीं पुण्य तिथि. लगता ही नहीं कि उन्हें खोये इतने बरस बीत चुके हैं.उनका अंतिम गीत चंचल,शीतल, निर्मल, कोमल,  संगीत की देवी स्वर सजनी क्या 35 साल पुराना हो चुका है ? सोचो तो बड़ा आश्चर्य होता है.

                    न हाथ छू सके, न दामन ही थाम पाये
                    बड़े करीब से कोई उठ कर चला गया...

     व्यक्ति जाता है, व्यक्तित्व नहीं जाता. गायक जाता है, गायन नहीं जाता. कलाकार जाता है, कला नहीं जाती. इसीलिये ऐसी हस्तियों के चले जाने के बावजूद उनकी मौजदगी का एहसास हमें होता रहता है.जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल.........जी चाहे जब हमको आवाज दो, हम हैं वहीं –हम थे जहाँ..........

     मुकेश जी का जन्म दिल्ली में माथुर परिवार में 22 जुलाई 1923 को हुआ था. उनके पिता श्री जोरावर चंद्र माथुर अभियंता थे. दसवीं तक शिक्षा पाने के बाद पी.डब्लु.डी.दिल्ली में असिस्टेंट सर्वेयर की नौकरी करने वाले मुकेश अपने शालेय दिनों में अपने सहपाठियों के बीच सहगल के गीत सुना कर उन्हें अपने स्वरों से सराबोर किया करते थे किंतु विधाता ने तो उन्हें लाखों करोड़ों के दिलों में बसने के लिये अवतरित किया था. जी हाँ अवतरित क्योंकि ऐसी शख्सियत अवतार ही होती हैं. सो विधाता ने वैसी ही परिस्थितियाँ निर्मित कर मुकेशजी को दिल्ली से मुम्बई पहुँचा दिया. तत्कालीन अभिनेता मोतीलाल ने मुकेश को अपनी बहन के विवाह समारोह में गीत गाते सुना और उनकी प्रतिभाको तुरंत ही पहचान लिया.

     मात्र 17 वर्ष की उम्र में मुकेश मोतीलाल के साथ मुम्बई आ गये. मोतीलालजी ने पण्डित जगन्नाथ प्रसाद  के पास उनके संगीत सीखने की व्यवस्था भी कर दी. मुकेश के मन में अभिनेता बनने की इच्छा बलवती हो गई थी. उनकी यह इच्छा पूरी भी हुई. 1941 में नलिनी जयवंत के साथ बतौर नायक फिल्म निर्दोष में उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुवात की. इस फिल्म में उनके गीत भी रिकार्ड हुये. दुर्भाग्यवश फिल्म फ्लॉप रही. इसके बाद मुकेश ने दु:ख-सुख और आदाब अर्ज फिल्म में भी अभिनय किया. ये फिल्में भी चल नहीं पाई. मोतीलाल जी ने मुकेश को संगीतकार अनिल बिस्वास से मिलवाया. अनिल बिस्वास ने उन्हें महबूब खान की फिल्म के लिये साँझ भई बंजारे गीत गाने के लिये दिया मगर मुकेश इस गाने को बिस्वास दा के अनुरुप नहीं गा पाये. 

     अनिल बिस्वास ने मजहर खान की फिल्म पहली नज़र के लिये दिल जलता है तो जलने दे, आँसू न बहा फरियाद न कर मुकेश जी की आवाज में रिकार्ड कराया. यह गीत मुकेश के लिये मील का पत्थर साबित हुआ.  इस गीत  की सफलता ने स्वर्णिम भविष्य के सारे द्वार खोल दिये. 1947 में फिल्म अनोखा प्यार के गीत जीवन सपना टूट गया बेहद हिट हुआ.

Friday, August 26, 2011

श्रद्धांजलि - मुकेश

मेरा महबूब नजर से दूर
नजारों में कहीं खोया
ये था मंजूर मगर अब वो
सितारों में कहीं खोया.

चमन बदले, वतन बदले
मगर एहसास रहता है
मेरा महबूब, मेरा साथी
शरारों में कहीं खोया.

शिकायत क्यूँ खिजाँ से हो
सहारा दे रही है जो
मेरा महबूब, भरे मौसम
बहारों में कहीं खोया.

भँवर में डूबने वालों को
किस्मत से गिला कैसा
मेरा महबूब बहुत नजदीक
किनारों में कहीं खोया.

न ये पूछो कि कब्रों में
भटकता है अरुण क्यूंकर
हकीकत है मेरा साथी
मजारों में कहीं खोया.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)

{ प्रिय गायक मुकेश की स्मृति में 27 अगस्त 1976 को रचित }

Wednesday, August 24, 2011

बहुत देर कर दी ....

बहुत देर कर दी है तुमने आने में
पलक बंद कर मैं अब सोने वाला हूँ
मत कोशिश करना तुम मुझे जगाने की
मदिरालय का मैं इक टूटा प्याला हूँ...............................


चाहो तो अपनी पलकों को नम कर लेना
किसी बहाने अपने गम को कम कर लेना
और बुला लेना सूरज अपने आंगन में
मेरा क्या ? मैं बुझता हुआ उजाला हूँ..............................


तुम देवी हो कोई भी पूजा कर लेगा
मूरत हो , मंदिर में कोई धर लेगा
जीर्ण-शीर्ण , नख-शिख से दरका जाता हूँ
कैसे कह दूँ कि मैं एक शिवाला हूँ................................

बहुत देर कर दी है तुमने आने में
पलक बंद कर मैं अब सोने वाला हूँ.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)

{रचना वर्ष – 1978}