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Saturday, July 23, 2011

पीड़ा होगी....


रजकण हूँ आंगन में बिखरा रहने दो
नयनों में तुम नहीं बसाना – पीड़ा होगी.
क्रंदन हूँ कोयल की पंचम तानो का
अधरों पर तुम मुझे न लाना – पीड़ा होगी.

कीचड़ से बच कर चलना ही श्रेयस्कर है
वरना आँचल पर कलंक लग जायेगा
देहरी के बाहर पग धरना उचित नहीं है
निर्लज कंटक हाय ! अंक लग जायेगा.

शुभ-चिंतक हूँ दर्पण में तुम उम्र बाँच लो
मत अब कोई कदम बढ़ाना – पीड़ा होगी..............

शहनाई की मधुर रागिनी , रचो महावर
और हथेली पर मेंहंदी की रांगोली दो
दीवाली कर लो तुम अपने वर्तमान को
और अतीत की स्मृतियों को अब होली दो.

अंतिम आशीर्वाद लिये जब मैं आऊंगा
मत घूँघट से पलक उठाना – पीड़ा होगी..................

चूड़ी खनका कर अपने पैंजन झनका कर
कहना – कवि मैं गीत तुम्हारे लौटाती हूँ
इस चकोर के आगे मत तुम नीर बहाना
बरना हर इक बूँद कहेगी –मैं स्वाती हूँ.

और सुनो तुम मुक्त-भाव से हँसती रहना
होंठ काट कर मत मुस्काना – पीड़ा होगी..................

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Friday, July 22, 2011

इक बूँद तो छलक उठी होगी


मन में इक कसक उठी होगी
इक श्वाँस महक उठी होगी.

इक पल को बहक उठी होगी
कहीं कोयल चहक उठी होगी.

चूड़ी जब खनक उठी होगी
पैजनिया झनक उठी होगी.

थोड़ा सा तुनक उठी होगी
बिजुरी सी चमक उठी होगी.

जिस ओर भी पलक उठी होगी
मेरी सूरत झलक उठी होगी.

बारिश को रोक लिया होगा
इक बूँद तो छलक उठी होगी.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Monday, July 18, 2011

एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ


एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये  एकाकी से अपनत्व हुआ.

हृदय - धरातल पर होते हैं भाव अंकुरित
नयन-नीर से होता है वह पुष्प पल्लवित
पुष्प जिसे जग ने संज्ञा दी प्रेम-पुष्प की
प्रेम वही जिसे प्राप्त यहाँ अमरत्व हुआ.

एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये  एकाकी से अपनत्व हुआ.

शून्य ब्रह्म हो जहाँ नहीं,सविता हो कैसे
प्रेरक रत्नावली नहीं  – कविता हो कैसे
प्रेमहीन ! सम्बोधन का पर्याय “असम्भव”
प्रेम-भाव ही  जग में जीवन-सत्व हुआ.

एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये  एकाकी से अपनत्व हुआ.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Saturday, July 16, 2011

वर्षा ऋतु – एक चित्र ऐसा भी

मेघाच्छदित तृषा अपूर्ण
शून्य नेत्र अश्रु-पूरित
इंद्रधनुषी फिसलन व्यापी
सौदामिनी सहमी-सहमी.

ऋतु की राजनीति अनब्याही
मेघा पिघले , द्रवित धरा
जाने किस पर गाज गिरेगी
ऋतु यामिनी मौन हँसी.

उत्पादन के बीज अंकुरित
अहा ! फसल लहरायेगी
कविताओं का शैशव भी अब
यौवन मांग रहा है.

-अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग
छत्तीसगढ़.

Thursday, July 14, 2011

चाँद - उम्र के कैमरे से तीन चित्र

ऐ चाँद तू बचपन में
खिलौना सा लगे है.
यौवन में तू परियों का
बिछौना सा लगे है.
मैं आज तुझे गौर से
निहारता जो हूँ.
रोटी के सामने में
तू बौना सा लगे है.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,
दुर्ग
छत्तीसगढ़

Thursday, July 7, 2011

मिसरी की डली लगे......

ना कहने की आदत उसकी भली लगे
शोख शरारत ज्यों मिसरी की डली लगे.

एक आँख में राधा, दूसरी में कान्हा
रास रचाती वृन्दावन की गली लगे.

नजरों से ओझल हो तो लगती खुशबू
नजर जो आये तो जूही की कली लगे.

मक्खन जैसा हृदय , प्रेम गोरस जैसा
गोकुल की ग्वालन, मथुरा की गली लगे.

-अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Tuesday, July 5, 2011

जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें.


ज्येष्ठ पुत्र डॉ. चैतन्य निगम के 28 वें जन्म दिन पर विशेष

दिन अति पावन, हैं पावन भावनायें
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें.

प्रात की नव-रश्मियाँ सुख-आरती ले
गान-मंगल गायें , जीवन को सँवारें.
कर्म-पथ पर हर कदम ऐसा धरो तुम
सफलतायें स्वयम् चरणों को पखारें.

नित नई नूतन नवल हों कल्पनायें
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें.

हार्दिक शुभ कामनाओं सहित :-
अरुण कुमार निगम एवं श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)